राष्ट्रवाद के नाम पर बड़े-बड़े दावे करने वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार की पोल खुलती चली जा रही हैं। किसानों के मोर्चे पर लगातार फेल हो रही सरकार अब जवानों के मोर्चे पर भी कोई ठोस दावा करने की नैतिक शक्ति नहीं कर पा रही है।

क्योंकि एक ऐसी रिपोर्ट आई है जिससे स्पष्ट हो गया है कि सैनिकों को भारी अव्यवस्था और दुर्दशा में रहना पड़ रहा है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, जितने सैनिक युद्ध में मारे जाते हैं उससे कहीं ज्यादा सैनिक आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं और अव्यवस्था में मरने को मजबूर होते हैं।

यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया की इस रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल आत्महत्या करने वाले सैनिकों और अव्यवस्था से मरने वाले सैनिकों की संख्या इतनी है जितनी कि पूरे साल हमले या युद्ध में मारे जाने वाले सैनिकों की भी नहीं है।

प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की इस खबर को न तो अखबार तवज्जो दे रहे हैं और न ही राष्ट्रवादी कहलाने वाले टीवी न्यूज़ चैनल। जिन्हें सेना और राष्ट्रवाद के नाम पर रोजाना करोड़ों लोगों को भड़काना आता है मगर अव्यवस्था में मर रहे सैनिकों के लिए आवाज उठाना उचित नहीं लगता है।

सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की राजनैतिक सफलता में राष्ट्रवादी भावनाओं के उभार का बड़ा योगदान है।

इसलिए भी सवाल करना और ज्यादा जरूरी हो जाता है कि क्या ये वही जवान हैं जिनके नाम पर वोट मांगा जाता है? क्या ये वही जवान हैं जिनके नाम पर एक बहुत बड़ी आबादी को बरगलाया जाता है?