ऐसा सिर्फ सस्ती पब्लिसिटी पाने के लिए और माहौल गरमाने के लिए नहीं कहा जा रहा है, ऐसा तथ्यों के आधार पर कहा जा रहा है. जो चीजें दिखाई दे रही हैं उन चीजों को समझते हुए भविष्य में क्या होगा उन घटनाओं का अंदाजा लगाया जा रहा है.पिछले 5 वर्षों में भारत में बहुत से केंद्र सरकार विरोधी आंदोलन और प्रदर्शन हुए है. उन सभी आंदोलनों को बुरी तरीके से मौजूदा सत्ताधारी पार्टी ने कुचल दिया और प्रदर्शनों को सिरे से विपक्ष का प्रपोगैंडा बता दिया.

मीडिया ने भी उन आंदोलनों को अपने प्लेटफॉर्म पर जगह नहीं दी, आंदोलन जिन मुद्दों पर किए गए थे उन मुद्दों को तवज्जो नहीं दी, उल्टे सरकार के साथ सुर मिलाकर मीडिया ने भी हर आंदोलन, हर प्रदर्शन को विपक्ष की साजिश बता कर अपने दर्शकों के साथ, अपने पेशे के साथ, देश के साथ धोखा किया.  मीडिया तो सरकार की प्रचार एजेंसी ही बनी है. इस पर बहुत सी बातें हो चुकी और आगे भी होंगी. लेकिन अभी आते हैं मूल मुद्दे पर…. हार्दिक पटेल ने गुजरात के अंदर एक आंदोलन किया था, जिसके तहत गुजरात में सत्ता का विरोध किया था.

स्मरण रहे गुजरात में लंबे समय से भाजपा की सरकार है. हार्दिक पटेल पर सरकार का विरोध करने मात्र पर देशद्रोह का मुकदमा लगाया गया था, जिसकी वजह से हार्दिक पटेल लंबे समय तक जेल में रहे और अभी भी सत्ताधारी पार्टी की जब भी मर्जी होती है, हार्दिक पटेल को गिरफ्तार कर लिया जाता है. ऐसी छोटी-मोटी घटनाओं पर देश के लोगों ने कभी ध्यान नहीं दिया. पिछले दिनों दिल्ली के अंदर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी मे घुसकर कुछ गुंडों ने मारपीट और तोड़फोड़ की. दिल्ली पुलिस और अन्य किसी ने भी अभी तक नहीं बताया कि आखिर वह गुंडे पकड़े क्यों नहीं गए? पिछले दिनों दिल्ली के अंदर दंगे हुए थे.

उन दंगों में सोशल मीडिया के जरिए कई सारे नाम दिखाई दिए जिनके भड़काऊ भाषणों के कारण दंगों ने उग्र रूप धारण किया. ऐसे चेहरों पर सरकार की तरफ से और स्वयं दिल्ली पुलिस की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की गई, लेकिन दिल्ली दंगों की चार्जशीट में में जो नाम सामने आए हैं वह चौंकानेवाले नाम हैं. दिल्ली पुलिस ने दिल्ली में हुए दंगों में जिनका का हाथ बताया है, यह वो नाम हैं जिन्होंने शाहीन बाग का समर्थन किया था CAA और NRC के विरोध को अपना समर्थन दिया था. गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन होती है, यानि फिर भाजपा सरकार.

जिन लोगों ने भी समर्थन किया था और पब्लिक के बीच उनकी आवाज सुनी जाती है, उन्हीं में से कुछ नाम उठाकर दिल्ली पुलिस ने चॉर्जशीट में डाल दिया है. इससे भी अंदाजा लगता है कि आने वाला समय कितना भयावह होने वाला है.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए गाँव की हकीकत स्टिंग ऑपरेशन द्वारा सबके सामने लाने वाली महिला पत्रकार हो या योगी सरकार से सवाल करने वाले पत्रकार हों, या विनोद दुआ जैसे वरिष्ठ और सम्मानित पत्रकार ही क्यों ना हों, यदि आपने सरकार (भाजपा) का विरोध किया, उससे कठिन सवाल पूछे, सच का आईना दिखाया तो भाजपा सरकारें लोकतंत्र और पत्रकारिता दोनों की मर्यादा और अधिकार को धत्ता बताते हुए आपका मुंह बंद करने की हर संभव कोशिश करेंगे.

फिलहाल सरकार की ये कुचेष्टा सच बोलने वाले, सवाल करने वाले को जेल भेज कर सफल हो रही है. उपरोक्त उदाहरणों में ना झुकने वाले विरोधियों जैसे लालू यादव को लगातार जेल में रखने को भी जोड़ कर देखें तो सत्ताधारी भाजपा पार्टी ने स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि आने वाले समय में अगर सत्ताधारी पार्टी की नीतियों के खिलाफ, कार्यों के खिलाफ, सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ आवाज उठाने की किसी ने भी कोशिश की तो उसकी आवाज़ दबाने के लिए सरकार कुछ भी कर सकती है.

किसी तरह यदि सच का परचम बुलंद करने वाले ने झुकने, बिकने से इंकार कर दिया तो उसे उठाकर जेल में डाल दिया जाएगा, उसके ऊपर तरह-तरह के मुकदमे ठोक दिए जाएंगे. दिल्ली दंगों में जिनका भी नाम दिल्ली पुलिस द्वारा जोड़ा जा रहा है, उन्हें यह सिर्फ सरकार की तरफ से संभवत: एक चेतावनी दी जा रही है कि आने वाले समय में सरकार के खिलाफ किसी भी प्रकार का कोई आंदोलन करने की, कोई संगठन, कोई व्यक्ति या पार्टी कोशिश ना करे. नहीं तो उन्हें भी ऐसे ही किसी भी जबरन गढ़कर तैयार किए मुद्दे पर फंसा कर किसी को भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा, सरकार विरोधी या देशद्रोही करार देकर लंबे समय तक उनको जेल में रखा जाएगा.

पिछले दिनों हम लोगों ने डॉ कफील खान के साथ उत्तरप्रदेश में जो कुछ भी हुआ वह देखा ही है, डॉक्टर कफील खान सरकारी दमन के साक्षात प्रमाण हैं. उत्तरप्रदेश सरकार ने हाल ही में एक ऐसा निर्णय लिया है, जिस पर देश की जनता को सोचना होगा और इस निर्णय ने हर प्रबुद्ध शख़्स को सोचने पर मजबूर भी कर दिया है कि आने वाला समय आपातकाल का ही होगा. और वह आपातकाल कितना भयावह होगा उसका अंदाजा उत्तरप्रदेश सरकार के निर्णय से लगाया जा सकता है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी स्पेशल सिक्योरिटी फोर्स ( UP SSF) का गठन किया है. एडीजी स्तर का अधिकारी यूपी स्पेशल सिक्योरिटी फोर्स का मुखिया होगा. इसकी अधिसूचना भी उत्तरप्रदेश सरकार की तरफ से जारी कर दी गई है. उत्तरप्रदेश सरकार ने जो निर्णय लिया है, उससे भी यही संदेश आता है कि आने वाले कुछ सालों में देश के अंदर आपातकाल लागू होगा. UP SSF यानी यूपी स्पेशल सिक्योरिटी फोर्स को सरकार की तरफ से ढेर सारी शक्तियां दी गई हैं, यह बिना किसी वारंट के किसी की भी गिरफ्तारी और तलाशी ले सकता है.

वहीं बिना सरकार की इजाजत के इसके अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ कोर्ट तक भी संज्ञान नहीं ले सकेगा. सबसे बड़ी बात इसमें यह है कि यह सरकारी इमारतों दफ्तरों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी लेगा, वहीं सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि कोई भी प्राइवेट कंपनी इसे रेंट पर ले सकती है, यानी पेमेंट देकर इसकी सेवाएं ले सकती है. UPSSF को जो शक्तियां दी गई हैं वह सोचने पर मजबूर इसलिए करती हैं कि यह जो भी काम करेगा उसमें अगर कुछ गलत भी होता है तो बिना सरकार की इजाजत के इसके खिलाफ़ कोर्ट भी संज्ञान नहीं ले सकता है.

जबकि भाजपा सरकारें हमेशा अपने वफ़ादारों पर कृपालु रही हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौजूदा सत्ताधारी पार्टी की मंशा क्या है? आने वाले समय में सरकार विरोधी कोई भी आवाज अगर उत्तरप्रदेश के अंदर बुलंद होती है तो बिना किसी वारंट के उसको गिरफ्तार किया जा सकता है. अगर कोई सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करता है तो उसके घर की तलाशी ली जा सकती है. और यूपी स्पेशल सिक्योरिटी फोर्स के दम पर उसको डराया जा सकता है, उसका मुंह बंद कराया जा सकता है.

2022 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में इसके जरिए सफलता प्राप्त करने पर भाजपा निश्चित रुप से अपने द्वारा शासित अन्य राज्यों में अथवा सीधे केंद्रीय बल के तौर ऐसी कोई फोर्स गठित करके उसका उपयोग देश भर में करेगी. आने वाले वक्त में कुछ ऐसी तस्वीर भी देखने को मिल सकती है कि, विपक्षी पार्टी के नेताओं को नजरबंद किया जाए, छोटी-मोटी पार्टियों को डराकर ही घर बैठा दिया जाए. कुल मिलाकर मौजूदा सत्ताधारी पार्टी पूरा मन बना चुकी है कि देश के अंदर से लोकतंत्र को पूरी तरीके से कुचल कर खत्म कर दिया जाए और देश के अंदर हिटलर सी तानाशाही लागू करके एकतरफा एक पार्टी देश के अंदर शासन करे और उसी का निर्णय पूरे देश की जनता के लिए मान्य हो.

आने वाले वक्त में आपातकाल की संभावना इसलिए भी प्रबल नजर आ रही है क्योंकि पिछले कुछ सालों में अलग-अलग राज्यों में दूसरी पार्टी की सरकारों को भाजपा ने अस्थिर करके गिराने का काम भी किया है. भाजपा की अगर लोकतंत्र में आस्था होती तो जनता द्वारा चुनी हुई सरकारों को नहीं गिराती. जिस तरह से जनता द्वारा नकारे जाने के बावजूद भाजपा खरीद-फ़रोख़्त के जरिए, केंद्रीय जाँच एजेंसियों के जरिए सौदेबाजी के जरिए हर प्रांत में सरकार बनाने को ललायित है, सत्ता के लिए परस्पर विरोधी विचारधारा वाली PDP के साथ तक गठबंधन कर रही है, उससे भी स्पष्ट संकेत मिल रहा की हाथों से सत्ता ना जाए, इसके लिए भाजपा कुछ भी कर सकती है, निश्चय ही करेगी.

आने वाला वक्त देश के ऊपर कहर बनकर टूटने वाला है. इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि, भाजपा चाहती है कि अधिक से अधिक राज्यों में उसकी सरकार रहे. अगर दूसरे राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें रहेंगी तो भाजपा को देश के ऊपर आपातकाल लागू करने में या संविधान बदलने में समस्या पैदा होगी और उसे बहुत ज्यादा समय दरकार होगा. क्योंकि ज्यादातर राज्यों में गैर भाजपा शासित सरकारें होंगी तो उनके पास भी पॉवर होगा और वह उस ताकत का इस्तेमाल कर केंद्र की सत्ताधारी पार्टी का विरोध करेंगे और हो सकता है कि आपातकाल लागू करने या संविधान बदलने में मौजूदा सत्ताधारी पार्टी सफल ना हो पाए.

इसलिए ज्यादा से ज्यादा राज्यों में मौजूदा सत्ताधारी पार्टी खुद की पार्टी की सरकार चाहती है. जिसमें उसका अगला लक्ष्य बिहार में सत्ता दोहराव और बंगाल में पहली बार सत्ता प्राप्ती है. रिस-रिस कर कुछ ऐसी खबरें भी बाहर आ रही हैं कि सरकार के पास पैसा नहीं है. अपने कर्मचारियों तक को वेतन देने के लिए सरकार के पास वित्त प्रबंधन नहीं है. इसलिए आने वाले समय में सरकारी नौकरी पूरी तरीके से बंद की जा रही. सरकार अब सरकारी नौकरी का नोटिफिकेशन जारी ही नहीं करेगी.

जो लोग वर्तमान में सरकारी नौकरी कर रहे हैं, उनके वेतन-भत्ते देने के लिए भी आने वाले समय मे सरकार के पास पैसा नहीं होगा, इसीलिए धड़ाधड़ निजीकरण किया जा रहा है. उद्योगपतियों के हाथों में देश की तमाम जनता है के भविष्य के बारे में निर्णय लेने की शक्ति होगी और मौजूदा सत्ताधारी पार्टी सिर्फ नाम के लिए सरकार में होगी. इस सत्ताधारी पार्टी को तो सिर्फ देश के अंदर हिटलर शाही व्यवस्था लागू करनी है. असली तानाशाही तो उद्योगपति ही चलाएंगे, अथवा उनके माध्यम से विदेशी कंपनियां