प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण की आधारशिला रखकर बीजेपी के एजेंडों को अमलीजामा पहना दिया.

राम मंदिर के साथ ही क्या बीजेपी के सारे सपने साकार हो गए या फिर अभी भी कुछ राजनीतिक लक्ष्य बचे हुए हैं, जिन्हें मूर्त रूप दिया जाना अभी बाकी रह गया है? स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस को मजबूत बनाया, जो 1947 आजादी के बाद भी जारी रहा और कांग्रेस का एकछत्र राज पूरी तरह कायम रहा.

इसका नतीजा यह रहा कि हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी विचारधारा को साकार करने के लिए भारतीय राजनीति में जगह नहीं स्थापित कर पा रहे थे. जनसंघ के जमाने से जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाना एजेंडा में शामिल रहा था, जिसे बीजेपी ने अपनी बुनियाद पड़ने के साथ ही अपना लिया था. हालांकि, बीजेपी यह बात भी बखूबी समझ रही थी कि महज 370 के सहारे सत्ता पर काबिज नहीं हुआ जा सकता है.

ऐसे में बीजेपी ने देश के जनभावनाओं से जुड़े हुए राम मंदिर मुद्दे को महज अपने एजेंडे में शामिल ही नहीं किया बल्कि आंदोलन के रूप में चलाया, जिसका उसे जबरदस्त सियासी फायदा भी मिला. शाहबानो के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था और तब से बीजेपी ने इसे अपने कोर एजेंडे में शामिल कर लिया था. इन मुद्दों को अमलीजामा पहनाने का प्रचार-प्रचार कर सत्ता पर आज बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ काबिज है.

2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से बीजेपी के पक्ष में नतीजे आए उससे सहयोगी दलों पर पार्टी की निर्भरता कम हुई है. बीजेपी संसद के दोनों सदनों में अपने दम पर बड़े से बड़े बिल पास कराने के लिए सक्षम हो गई है. मोदी सरकार को चुनाव में जनता का भरपूर समर्थन दिया, जिसने बीजेपी के लिए अपने मूल एजेंडे पर लौटने का रास्ता खोल दिया. यही वजह है कि बीजेपी अपने विचाराधारा वाले एजेंडों को मूर्त रूप दे रही है.

बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता पर काबिज होने के महज दो महीने के बाद ही अपने सपनों को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करते हुए विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया और उसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया. जनसंघ के दौर से ही बीजेपी 370 खत्म करने की मांग उठाती रही है. मोदी सरकार ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एक निशान, एक विधान, एक संविधान के सपने को साकार कर दिखाया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच अगस्त को अयोध्या में भूमि पूजन कर राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखकर औपचारिक शुरूआत कर दी है. अयोध्या में राम मंदिर भी बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में 1989 के पालमपुर अधिवेशन से शामिल था. 90 के दशक में राममंदिर आंदोलन ने बीजेपी को संजीवनी दी, लेकिन पार्टी और संघ का यह सपना मोदी सरकार में अब जाकर साकार हुआ.

राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर से 370 के बाद अभी बहुत सारे बीजेपी के वैचारिक एजेंडे बचे हुए हैं, जिन्हें कानूनी अमलीजामा पहनाने का काम बाकी है. कॉमन सिविल कोड, जनसंख्या नियंत्रण कानून और एनआरसी सहित तमाम मुद्दे बीजेपी के एजेंडे में हैं. इनमें मोदी सरकार किस मुद्दे को पहले और किसे बाद में करेगी यह उनकी अपनी प्राथमिकता होगी, लेकिन इन सारे काम को इसी कार्यकाल में पूरा करने का सरकार ने लक्ष्य रखा है. सरकार ने तय कर लिया है कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं.

सिर्फ राम मंदिर ही लक्ष्य नहीं

राम मंदिर के निर्माण से ही महज बीजेपी का सपना पूरा नहीं हो जाता है. बीजेपी के एजेंडे में वो तमाम मुद्दे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी विचाराधारा की जड़ें जमाने में बाधक मानता है. इनमें राम मंदिर तो महज प्रतीक के तौर पर है, लेकिन देश में सभी के लिए एक संविधान हो और वो भी बहुसंख्यक समुदाय के अनुकूल हो. यानी यूनीफॉर्म सिविल कोड को लागू करना मोदी सरकार का अब अगला लक्ष्य होगा

आरएसएस और बीजेपी के संगठन से जुड़े हुए तमाम नेताओं ने राम मंदिर के भूमि पूजन के पहले ही काशी और मथुरा की बात उठानी शुरू कर दी थी. इसके अलावा संघ प्रमुख से लेकर पीएम मोदी ने राम मंदिर की आधारशिला रखने के साथ ही जिस तरह से नए भारत की बात कही है. वो कैसा भारत होगा और उसका स्वरूप कैसा होगा इसका जिक्र नहीं किया गया है. क्या संघ की परिकल्पना पर आधारित नया भारत होगा, अगर ऐसा है तो मोदी सरकार के सामने फिर अभी लक्ष्य को अमलीजामा पहनाने की चुनौतियां होगी.