भारत विविधताओं का देश है। भारत में कई धर्म के लोग रहते हैं। यहां कई भाषाएँ बोली जाती है। अलग-अलग क्षेत्र के आधार पर, अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती है। अलग-अलग क्षेत्र में लोगों का खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज भिन्न हैं। इसके बावजूद सभी भारतीय एक समान नागरिक है। सभी के लिए एक संविधान है फिर भी कुछ ऐसे कानून हैं, जो मजहब के अनुसार है। जैसे ; तीन – तलाक, पोषण भत्ता इत्यादि। भारत को एक करने के लिए मजहबी कानून खत्म करना होगा। ‘समान नागरिक संहिता’ भारत में लागू करना जरूरी है। समान नागरिक संहिता से राष्ट्रीय एकता को संबल मिलेगा। इससे धर्म का भेद-भाव खत्म होगा। समान नागरिक संहिता समय की मांग है। सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता की जरूरत बता चुके हैं।

संविधान निर्माताओं ने ‘समान नागरिक संहिता’ की आवश्यकता पर लंबी बहस की थी लेकिन सबकी राय नहीं बन पाने के कारण इस विषय को नीति निदेशक तत्वों में इस अपेक्षा के साथ शामिल किया गया था कि भारतीय शासन इसे लागू करने के दिशा में आगे बढ़ेगा।
भारत अब उस परिस्थिति में आ चुका है जब समय यह मांग कर रही है कि देश मे धर्म और तुष्टिकरण की राजनीति बन्द होनी चाहिये।

इसी का परिणाम है कि आजादी के 75 वर्ष बीतने के बाद भी “समान नागरिक संहिता” कानून नहीं बन पाया है। जब 1955 में जवाहर लाल नेहरू द्वारा हिन्दू कोड बिल लाया गया था, यदि तभी न केवल हिंदू बहुसंख्यक समाज के लिए अपितु मुस्लिम, सिख, जैन, बुद्ध , फारसी आदि सभी अल्पसंख्यक समुदायों को सम्मिलित करते हुए विवाह, उत्तराधिकार,भरणपोषण भत्ता, स्कूल गणवेष जैसे पारिवारिक और सामाजिक विषयों पर संवैधानिक रूप से एक समान नागरिक संहिता बना दिया जाता तो आज इतनी विसंगतियां पैदा न होती लेकिन यह तुष्टिकरण के राजनीति की देन है जो ये परिस्थितियां अब तक विद्यमान हैं।

जब 1937 में केंद्रीय विधानमंडल ने शरीयत कानून को पारित किया था जो मुस्लिमों पर लागू होता रहा है। यहां तक की खोजा और कोच्चि मेनन लोगों को भी नहीं बख्शा, जो इसका विरोध कर रहे थे। तब अल्पसंख्यकों को अधिकार देने की बात क्यों नहीं याद आयी!

भारत के ही एक राज्य गोवा में “समान नागरिक संहिता” पहले से ही लागू है और वहां सभी मजहब के लोग रहते है , जब गोवा में “समान नागरिक संहिता” लागू है बिना किसी अड़चन के तो यह सवाल अनुत्तरित है कि फिर पूरे देश में ये क्यों नहीं लागू हो सकता है!

हाल ही में उत्तराखंड के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने राज्य में “समान नागरिक संहिता” कानून को लागू किया है, उसी प्रकार भारत के अन्य राज्यों में भी इसे लागू करना चाहिये। कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है जैसे – अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया , सूडान आदि। कुछ मुस्लिम देशों में भी अल्पसंख्यकों के पर्सनल लॉ को मान्यता नहीं दिया गया है। तुर्की और मिस्र जैसे देशों में किसी भी अल्पसंख्यक के लिए निजी कानून का मान्यता नहीं दिया गया है। समान नागरिक संहिता को लागू करने में देश के शासनतंत्र को विलंब नहीं करना चाहिये। “समान नागरिक संहिता” से राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिलेगा इससे सभी धर्मों को साथ लेकर चलने के लिये बल एवं देश के विकास के राह पर अग्रसर होने के लिये अवसर मिलेंगे, इसलिए देशहित में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनिवार्य हो चुका है।

पत्रकार- नरोत्तम कुमार सिंह ( विचार)