पटना:यदि बिहार की राजनीति की बात की जाए और उसमें राजनीति के इर्द गिर्द यदि लालू प्रसाद यादव की बात न हो तो , बिहार की राजनीति की रहस्य को समझ पाना मुश्किल सा लगने लगता है। आइए आज सियासत की बात में लालू प्रसाद यादव की छात्र जीवन से लेकर मुख्यमंत्री व रेल मंत्री तक सफर व परिवार को राजनीति के मुख्य धारा में लाने की सफर को जानते है।

सियासत के चरम से लेकर विवादो के दलदल में दिखाई देने वाला लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक कैरियर बेहद ही रोचक है। अपने राजनीतिक कैरियर में लालू प्रसाद यादव वैसे कितने करनामा किए हैं जिसने देश को चौका कर रख दिया है।

लालू प्रसाद यादव शुरू से ही तेज तर्रार थे, जब वो पटना विश्वद्यालय में छात्र नेता थे तभी उन्होंने राज्य की राजनीति को भांप लिया था। छात्र राजनीति में अलग छाप छोड़ कर प्रभाव बनाना उसके बाद सक्रिय उस समय हो जाते हैं जब वो जेपी आंदोलन में वर्ष 1974 में शामिल हो जाते हैं। जेपी आंदोलन के दौरान लालू ने जनता को समस्या को करीब से देखा उसके बाद जेपी के पाठशाला से सीधे निकलने के बाद देश की प्रतिनिधित्व करने वाला भवन संसद भवन में पहुंचने का काम किए। बिहार के छपरा से लालू प्रसाद यादव मात्र 29 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुंचे थे। उसके बाद 10 अप्रैल 1990 का दिन लालू प्रसाद यादव के जीवन में एक बड़ा बदलाव लेकर आया बिहार की जनता को एक नए मुख्यमंत्री मिले अर्थात् लालू प्रसाद यादव 10 अप्रैल 1990 को ही बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिए उस समय झारखंड भी बिहार का ही हिस्सा था। जनता पार्टी की सरकार में सीएम बनने के बाद अपना कद को और भी मजबूत किए लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में केंद की भूमिका निभाने लगे।

1990 में जब जनता दल बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो मुख्यमंत्री के 3 दावेदार सामने आए. पहले रामसुन्दर दास जिनके सिर पर प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का हाथ था और दूसरे थे रघुनाथ झा जिनपर दिग्गज समाजवादी चंद्रशेखर की छत्रछाया थी. इन दोनों सूरमाओं के बीच लालू प्रसाद को रेस जीतनी थी. लालू प्रसाद इस त्रिकोणीय संघर्ष में कामयाब रहे थे.। जिसको हम इस वीडियो में पहले ही चर्चा किए हैं।

सत्ता की कुर्सी उन्हें बहुत मुश्किल से मिली थी,

वे इसे यूं ही खोना नहीं चाहते थे। जब उन्हें लगा कि अब वक्त आ गया है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा, तो उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में राबड़ी देवी का चयन कर लिया. लालू प्रसाद चाहते तो अपनी पार्टी के किसी वफादार सिपाही को मुख्यमंत्री बना सकते थे. ऐसा करने पर वे फौरी तौर पर महान भी हो जाते और कई मौकों पर राबड़ी देवी की वजह से हो रही आलोचनाओं से भी बच जाते. लेकिन सियासत के माहिर खिलाड़ी लालू प्रसाद यादव अच्छी तरह जानते थे कि मुख्यमंत्री की कुर्सी ही ऐसी है जिसमें अपने अलावा किसी और पर भरोसा किया ही नहीं जा सकता.

हालांकि, सबसे अच्छी बात ये रही कि लालू प्रसाद की पार्टी के कई सिपहसालार लालू प्रसाद के फैसले के साथ मजबूती से डटे रहे. उन नेताओं में रघुवंश बाबू, जगदानंद सिंह, अब्दुल बारी सिद्दिकी और रामचंद्र पूर्वे जैसे दिग्गज थे जो लालू प्रसाद के हर फैसले में छाया की तरह उनके साथ थे और इस घटना के क़रीब 16 सालों बाद जीतनराम मांझी ने नीतीश कुमार को सियासी धोखा देकर ये साबित कर दिया कि राबड़ी को सीएम बनाने का लालू प्रसाद का फैसला सियासी तौर पर कितना प्रासंगिक था।

इस घटनाक्रम के बाद अब राबड़ी देवी को बिहार की सीएम बनने को सफर के उपर चर्चा करते हैं कैसे रसोई घर से निकलकर बिहार की प्रथम महिला सीएम बन गई ,राबड़ी देवी। जो देश की राजनीति के अध्याय में शुमार है। घर के किचेन से लेकर अपने परिवार तक ही अपने जवाबदेही को बरकरार रखने वाली महिला अचानक कैसे बन गई बिहार की सीएम।

वर्ष 1996 में जब लालू प्रसाद यादव की नाम चरा घोटाला में आया तो अचानक बिहार की राजनीति में एक मोड़ सा आ गया बहुत कुछ होने के बाद लालू प्रसाद यादव को अंतिम रूप से बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा । अब विपक्ष जो की लालू प्रसाद यादव की कैबिनेट में विपक्ष में था उसका कहना था कि अब लालू प्रसाद यादव की राजनीति ख़त्म हो गई अब लालू का बिहार की राजनीति से हमेशा हमेशा के लिए जाना तय हुआ। यहीं पर लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने जब राबड़ी देवी के नाम के उपर बिहार की सीएम बनने की मुहर लगाई तो उसी समय बिहार की राजनीति में ये बात होने लगा की लालू प्रसाद यादव पार्टी का स्वामी है और पत्नी का भी स्वामी है इसीलिए अब वो पूरे बिहार का स्वामी होंगे जो की एक आलोचना भी था।

लालू के एक इशारे पर पार्टी के नेता राबड़ी देवी के फैसलों को ‘आखिरी’ मानने लगे। विपक्ष, तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ भी नहीं कर पा रहा था। जब लालू यादव ने पद छोड़ने का फैसला किया तो उन्होंने अपने विधायकों की एक मीटिंग बुलाई । इस मीटिंग में उन्होंने ऐलान किया कि अब वो पद छोड़ रहे हैं, आप लोग अपने नेता का चुनाव कर लें। जिनमें राबड़ी यादव का नाम पहले आया है और उनके नाम पर मुहर भी लग गई। आइए आगे की बात करते है। इस वीडियो में

राबड़ी देवी का जन्म गोपालगंज में 1956 ईस्वी को हुआ था. उन्हें बिहार की पहली और एकमात्र महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल है. 17 साल की उम्र में 1973 को उनका विवाह लालू प्रसाद यादव के साथ हुआ था। राबड़ी देवी 7 बेटियों और 2 बेटों की मां हैं। जिसमे बेटी मीसा भारती भी राजनीति में सक्रिय है और छोटे बेटा तेजस्वी यादव अभी बिहार के डिप्टी सीएम है। बड़े बेटा तेजप्रताप यादव पर्यावरण एवं वन मंत्री है। बेटी रोहिणी आचार्य हमेशा सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती है जो हाल ही में पिता लालू प्रसाद यादव को अपनी एक किड़नी दे स्वस्थ्य करने का काम की है।

महज चौ‌थी पास राबडी देवी के जिम्मे अचानक इतनी बड़ी जिम्मेदारी आ गई जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। लेकिन उन्होंने उसे इतनी ही शिद्दत से निभाया जितना परिवार को चलाने की जिम्मेदारी को
राबड़ी देवी, लालू यादव को साहेब कह कर पुकारती थीं। वर्ष 1973 में जब उनकी शादी लालू प्रसाद यादव से हुई थी ,उस समय लालू यादव पटना के पशुचिकित्सा महाविद्यालय में एक निचले दरजे के कर्मचारी थे, उन दिनों वह लालू को ‘ईह’ कह कर बुलाती थीं लेकिन समय बदलने के साथ वह उन्हें ‘साहेब’ बुलाने लगीं। राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सारे फैसले साहेब ही लिया करते थे। ये बात आलोचकों का कहना है

राबड़ी देवी कई मौकों पर यह कह चुकी हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनना कभी पसंद नहीं था लेकिन पति के जेल जाने की संभावनाओं को देखते हुए उन्होंने इस पद को स्वीकार कर लिया था। उन्हें न तो सचिवालय पसंद था और न ही विधानसभा, उन्हें रसोईघर और उसका बगीचा भाता था। लेकिन बाद में परिस्थितियां उनके हाथ से निकल गईं। उन्होंने लगभग छह साल तक बिहार की सत्ता संभाली।हालांकि राजनीति में उनकी पहचान उनकी मासूमियत के लिए भी थी। भोले से चेहरे वाली राबड़ी देवी मुश्किल से मुश्किल बात भी इतनी आसानी से कह जाती थीं कि सुनने वाले अचंभे में पड़ जाते थे।हालांकि साल 2005 में जेडीयू-भाजपा गठबंधन के हाथों चुनाव हारने के बाद राबड़ी देवी ने राजनीति को लगभग अलविदा ही कह दिया और दोबारा अपने बच्चों की परवरिश में जुट गईं।
लेकिन कुछ दिन बाद ही साल 2010 में वो एक बार फिर सक्रिय राजनीति में वापस लौटी और राघोपुर सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन इस बार राजनीति उनके लिए इतनी सुलभ नहीं रही और वो जेडीयू के सतीश यादव के हाथों दस हजार वोटों से चुनाव हार गईं।
धीरे धीरे दौर फिर 2015 में बिहार विधानसभा की समय आया लालू प्रसाद यादव इस बार जेडीयू के साथ थे उस समय कई दिनो से चल रहे बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन एक साथ नहीं था उस साल जो नया गठबंधन जेडीयू आरजेडी और अन्य पार्टियों का महागठबंधन बना था उसको बहुमत प्राप्त हुआ उस समय ही लालू प्रसाद यादव के छोटे सुपुत्र तेजस्वी प्रसाद यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री बने और लालू प्रसाद यादव के बड़े सुपुत्र तेजप्रताप यादव बिहार के स्वास्थ्य विभाग संभालने लगे बराबर लालू प्रसाद यादव पर चरा चोर का आरोप लग रहा था नीतीश कुमार ने पुनः एक बार उसी बात को कह कर की राजद के साथी हमारे साथ काम सही से नहीं कर रहे है और वही राज ला रहे हैं जो लालू राज था जिसे जंगल राज का रूप बता पुनः लगभग 18 महिना के बाद बीजेपी के साथ जाकर मिल गए और बचे शेष कार्यकाल को आगे बढ़ा ले गए। धीरे धीरे कार्यकाल बीता और पांच साल बाद पुनः 2020 में बिहार विधानसभा का चुनाव आया और इस समय भी जेडीयू बीजेपी एक साथ लड़े और राजद कांग्रेस गठबंधन महागठबंधन अलग से और एनडीए गठबंधन अलग से चुनाव लड़े जिसमे महागठबंधन में सीएम चेहरा तेजस्वी यादव थे तो एनडीए का नीतीश कुमार थे चुनाव में फाइनल निर्णय बिहार की जनता ने एनडीए को ही दी और 115 सीटों के साथ महागठबंधन विपक्ष में बैठा कुछ समय बाद पुनः नीतीश कुमार जो की बिहार के सीएम हैं जिनका आज बिहार की राजनीति में ओहदा सबसे बड़ा है वो जिधर जाएं ऊंट उधर ही बैठता है अर्थात् जीत उसी का होता है। कुछ समय सरकार चलाने के बाद पुनः नीतीश कुमार एक बार राजद महागठबंधन के साथ आकर सरकार बनाएं अबकी बार भी तेजस्वी यादव बिहार के डिप्टी सीएम के साथ साथ तीन विभाग संभाले जिसमे पथ निर्माण विभाग जो की पहले भी था उसके बाद स्वास्थ्य विभाग जो की 2015 के समय में तेजप्रताप यादव के पास था अबकी बार तेजस्वी यादव के पास है साथ ही साथ नगर विकास विभाग भी है।

ब्यूरो The स्टार इंडिया