
बदलते वैश्विक परिदृश्य के बीच अमेरिका और भारत के बीच रिश्ते के चुनौतियां और समस्याएं। भारत और अमेरिका दोनो को औपनिवेशिक सरकार से संघर्ष के बाद स्वतंत्रता प्राप्त हुई है अमेरिका वही पेरिस शांति के बाद 1783 ई. में स्वतंत्र होता है तो भारत 20वी शताब्दी के सन् 1947 मे स्वतंत्र होता है। लेकिन दोनों में काफी असमानता के बीच भी समानता है अमेरिका जहां पूंजीवादी व्यवस्था को मान्यता देता है तो भारत , भारतीय समाज के बीच असमानता और विविधता के कारण रूस के समाजवादी व्यवस्था को मान्यता देता है। लेकिन वही दोनो राष्ट्र भारत ~अमेरिका समानता के रूप मे लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाते है। जहां भारत शीत युद्ध के समय गुटनिरपेक्ष राष्ट्रो के साथ खड़ा होकर शांति के पाठ पढ़ाया तो वही अमेरिका पश्चिमी राष्ट्रो का नेतृत्व किया।फिर भी एक समय था जब भारत का सामरिक संबंध रूस से जो की एक साम्यवादी राष्ट्र है फिर भीअच्छा हुआ करता था लेकिन क्या अमेरिका के साथ बढ़ता रिश्ता भारत को रूस से दूर कर देगा? भारत के प्रथम नागरिक पंडित जवाहरलाल नेहरू कहा करते थे की दोस्त कभी बदल सकते है लेकिन पड़ोसी कभी नही इसलिए हमारा संबंध पड़ोसी से हमेशा अच्छा ही होना चहिएन की न की दोस्त से।क्या ये मोदी सरकार आज इस कथन पर अडिग दिखाई पड़ रही है? भारत~अमेरीका के बीच बढ़ रहे गहरे रिश्ते का मायने कुछ तो है भारत जहां इस रास्ते से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य बनना चाहता है तो वही अमेरिका अपना व्यापार लाभ देख रहा है। क्योंकी अमेरिका भारत के उस संबंधी राष्ट्र में शामिल है जहां भारत का ट्रेड डेफिसिट है। लेकिन एक सच है की भारत जहां हमेशा आतंकवाद, साइबर क्राइम जैसे घटनाओं से ग्रश्त है तो वैसे ही अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है और दोनों का वैश्विक नारा भी है हमे मुक्त आतंकवाद विश्व चहिए। भारत जहां अपने पड़ोसी, पाकिस्तान के आतंकवादी सगंठन से परेशान रहता है वो अमेरिका के साथ से इसको एफ ए टी एफ के ब्लैक लिस्ट में डालने का कोशिश करता है , तो अमेरिका भी भारत के सहयोग से प्रशान्त महासागर में सामरिक वर्चस्व को एशिया केन्द्र शान्ति कायम रखना चाहता है। इसलिए ही तो QUAD जैसे सगंठन को बनाया गया है जिसमे मुख्य रूप से भारत,अमेरिका,जापान और ऑस्ट्रेलिया है जिसमे सभी देश एक दुसरे को डिफेंस सुरक्षा, महामारी हेल्प, सैनिक युद्धाभ्यास सामरिक सहायता करते है। जहां कभी रूस के साथ भारत के मजबूत सामरिक स्थिति आज कमजोर दिखाई पड़ रही है क्योंकी ये सच है की जहां अमेरिका रहेगा वहां रूस नही रहेगा जबकि एक समय था की रूस भारत को सभी सेक्टरो मे मदद करता था क्यों नही वो पाकिस्तान के साथ युद्ध का मामला हो या चीन के साथ सीमा विवाद का जबकि चीन भी एक साम्यवादी और रूस का पड़ोसी भी है फिर भी । जब इजराइल और फिलिस्तीन में संघर्ष चालू था तब लग रहा था की पूरा विश्व दो भागो में बंट जाएगा जिसमे इजराइल के साथ अमेरिका खड़ा था तो अधिकांश मुस्लिम कंट्रीज फिलिस्तीन के साथ। अमेरिका जहां इजराइल के सहयोग से प्रशान्त महासागर में अपने आप को स्थापित करना चाहत है जहां भारत भी इजराइल के साथ ही खड़ा था। फिर तब रूस कहां जायेगा भारत से दूर ही तो। वैसे ही तालिबान~अफगानिस्तान संघर्ष के बीच भारत लोकतन्त्र विरोधी तालिबान के विरोध में खड़ा था जहां अमेरिका भी अफगानिस्तान के ही पक्ष में दिखाईं दिया था। आज मोदी सरकार में भारत का विदेशो के साथ कद तो बढ़ा है लेकिन चुनौतियां भी है जहां सदियों पुराना भारत का साथी छूट रहा है वही नया अमेरिका उसका जगह ले रहा है जिसका नेतृत्व जो बाइडेन कर रहे है। जो की भारत के सऊदी अरब के संबंध में दो चांद लगाने का काम कर रहा है। जबकि वही ईरान के साथ चुनौतियों का सामना करना पड रहा है क्योंकि न्यूक्लियर सप्लायर को लेकर जो प्रतिबंध अमेरिका ने ईरान पर लगाया है। जबकि भारत भी अमेरिका के सहयोग से न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप्स के भूमिका में आना चाहता है। वही तेल, पेट्रोलियम के कच्चे मैटेरियल के लिए भारत को अमेरिका पर निर्भर होना भारत में महंगाई का एक कारण भी है जिसका सीधा ~सीधी प्रभाव हमारे मार्केट मे दिखाई पड़ रहा है। अच्छे दोस्त के बावजूद भी इन साल अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक के द्वारा लगाया गया नया नियम टैक्स सिस्टम भारतीय रूपया को और कमजोर करेगा हालांकि भारत के आरबीआई के पास फॉरेक्स रिजर्व ज्यादा होने के बावजूद भी हमारा रूपया कमजोर क्यों इसका मात्र कारण अमेरिका को व्यापार अपने हिसाब से करने का है। आज भारत अमेरिका से रक्षा इक्विपमेंट खरीदारी करने में सबसे बड़ा देश है मोदी~ट्रम्प के दोस्ती ने इसमें और इजाफा किया है। अमेरिका में मोदी का जबरदस्त स्वागत का क्या था । मायने भारत में नमस्ते ट्रम्प का क्या था मायने। आज भारत पर अमेरिका ये प्रतिबंध लगा रहा है की आप कच्चा तेल पेट्रोलियम का खरीदारी केवल अमेरिका से करें ताकि पूरा तेल सप्लाई अमेरिका के माध्यम से एक तय दर पर पूरा विश्व में हो और ईरान को इस बाजार से दूर कर दिया जाए आर पूरा वैश्विक तेल बाजार अमेरिका के हिसाब से संचालित हो। जबकि ईरान में बनी रईस जो की एक कट्टरपंथी है के नेतृत्व में बनी सरकार इन सब को लेकर संकल्पित है और सारे इन प्रतिबंधों को खारिज करती है जिनको बधाई भारत के तरफ से पीएम और राष्ट्रपति भी दिए थे। चीन जहां भारत के साथ हमेशा सिमा विवाद मोल ही ले रहा है जो की पाकिस्तान को हमेशा सपोर्ट करता है उसके लिए भारत का संबंध रूस से होना बहुत जरूरी है। लेकिन अब भारत क्या करे अब बदलते परिवेश ने भारत को चुनौतियों के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है। भारत को रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध को मजबूत करने की जरूरत है तब ही तो कुछ हो सकता है और भारत मध्य एशिया में नेतृत्व भी कर सकता है जहां पर , रूस, चीन, मंगोलिया मजबूत है और साथ ही साथ उतरी कोरिया से भी अच्छा संबंध स्थापित कर सकता है। भारत का संबंध पूर्वी एशिया में सर्वोच्च नेतृत्व के रूप में हमेशा से पहचाना गया है जिसका स्थान चीन लेने के लिए सभी राष्ट्र जो की एशिया महाद्वीप में है उनको वन बेल्ट रोड, बी आर ई के अंतर्गत लाकर नेतृत्व कर भारत को यहां से रिप्लेस करना चाहती है जिसका समर्थन पाकिस्तान जोर से कर रहा है और चीन भी पाकिस्तान के साथ कदम से कदम मिलाकर प्रत्येक घड़ी खड़ा है क्यों नही वह डिफेंस का मामला हो या स्वास्थ्य का हो या शिक्षा का मामला हो। लेकिन भारत ने इन सभी के बीच इस कोरोना महामारी में सबको एक नजर से देखने का काम किया है और G~7 जैसे सगंठन में कोरोना वायरस विरोधी वैक्सीन के ज्यादा से ज्यादा उत्पादन के लिए who से ये गुजारिश किया की बौद्धिक सम्पदा जैसे अधिकार को हटाया जाए जो की वैक्सीन के खोज करने वाली कम्पनी को 20 साल के लिए मिलता है की उस वैक्सीन को जिस कम्पनी ने खोजी है वही उत्पादन करेगी केवल ।जिसका सभी देशों ने स्वागत किया जिससे विकासशील और छोटे राज्य जिनके पास फार्मास्यूटिकल मैटेरियल नहीं है वो भी इसका उत्पादान कर सके। जहां कोरोना वायरस जैसे खतरनाक वायरस का ओरिजिन चीन के वुहान लैब को माना जा रहा है जिसका विरोध चीन पूरा विश्व का झेल रहा है । तो वही अमेरिका~भारत एक दुसरे को वैक्सीन सप्लाई और फार्मास्यूटिकल कच्चा मैटेरियल को सप्लाई कर रहा है। तो रूस भी इस क्षेत्र में भारत को सहयोग दिया है ।रूस के sputnik~v भी भारत में कोरोना वायरस के टिका के रूप में लगाया जा रहा है। आज भारत मेडिकल क्षेत्र में दावा को लेकर सबसे ज़्यादा रॉ मैटेरियल पूरा विश्व को सप्लाई करता हैबदलते वैश्विक परिदृश्य के बीच अमेरिका और भारत के बीच रिश्ते के चुनौतियां और समस्याएं। भारत और अमेरिका दोनो को औपनिवेशिक सरकार से संघर्ष के बाद स्वतंत्रता प्राप्त हुई है अमेरिका वही पेरिस शांति के बाद 1783 ई. में स्वतंत्र होता है तो भारत 20वी शताब्दी के सन् 1947 मे स्वतंत्र होता है। लेकिन दोनों में काफी असमानता के बीच भी समानता है अमेरिका जहां पूंजीवादी व्यवस्था को मान्यता देता है तो भारत , भारतीय समाज के बीच असमानता और विविधता के कारण रूस के समाजवादी व्यवस्था को मान्यता देता है। लेकिन वही दोनो राष्ट्र भारत ~अमेरिका समानता के रूप मे लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाते है। जहां भारत शीत युद्ध के समय गुटनिरपेक्ष राष्ट्रो के साथ खड़ा होकर शांति के पाठ पढ़ाया तो वही अमेरिका पश्चिमी राष्ट्रो का नेतृत्व किया।फिर भी एक समय था जब भारत का सामरिक संबंध रूस से जो की एक साम्यवादी राष्ट्र है फिर भीअच्छा हुआ करता था लेकिन क्या अमेरिका के साथ बढ़ता रिश्ता भारत को रूस से दूर कर देगा? भारत के प्रथम नागरिक पंडित जवाहरलाल नेहरू कहा करते थे की दोस्त कभी बदल सकते है लेकिन पड़ोसी कभी नही इसलिए हमारा संबंध पड़ोसी से हमेशा अच्छा ही होना चहिएन की न की दोस्त से।क्या ये मोदी सरकार आज इस कथन पर अडिग दिखाई पड़ रही है? भारत~अमेरीका के बीच बढ़ रहे गहरे रिश्ते का मायने कुछ तो है भारत जहां इस रास्ते से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य बनना चाहता है तो वही अमेरिका अपना व्यापार लाभ देख रहा है। क्योंकी अमेरिका भारत के उस संबंधी राष्ट्र में शामिल है जहां भारत का ट्रेड डेफिसिट है। लेकिन एक सच है की भारत जहां हमेशा आतंकवाद, साइबर क्राइम जैसे घटनाओं से ग्रश्त है तो वैसे ही अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है और दोनों का वैश्विक नारा भी है हमे मुक्त आतंकवाद विश्व चहिए। भारत जहां अपने पड़ोसी, पाकिस्तान के आतंकवादी सगंठन से परेशान रहता है वो अमेरिका के साथ से इसको एफ ए टी एफ के ब्लैक लिस्ट में डालने का कोशिश करता है , तो अमेरिका भी भारत के सहयोग से प्रशान्त महासागर में सामरिक वर्चस्व को एशिया केन्द्र शान्ति कायम रखना चाहता है। इसलिए ही तो QUAD जैसे सगंठन को बनाया गया है जिसमे मुख्य रूप से भारत,अमेरिका,जापान और ऑस्ट्रेलिया है जिसमे सभी देश एक दुसरे को डिफेंस सुरक्षा, महामारी हेल्प, सैनिक युद्धाभ्यास सामरिक सहायता करते है। जहां कभी रूस के साथ भारत के मजबूत सामरिक स्थिति आज कमजोर दिखाई पड़ रही है क्योंकी ये सच है की जहां अमेरिका रहेगा वहां रूस नही रहेगा जबकि एक समय था की रूस भारत को सभी सेक्टरो मे मदद करता था क्यों नही वो पाकिस्तान के साथ युद्ध का मामला हो या चीन के साथ सीमा विवाद का जबकि चीन भी एक साम्यवादी और रूस का पड़ोसी भी है फिर भी । जब इजराइल और फिलिस्तीन में संघर्ष चालू था तब लग रहा था की पूरा विश्व दो भागो में बंट जाएगा जिसमे इजराइल के साथ अमेरिका खड़ा था तो अधिकांश मुस्लिम कंट्रीज फिलिस्तीन के साथ। अमेरिका जहां इजराइल के सहयोग से प्रशान्त महासागर में अपने आप को स्थापित करना चाहत है जहां भारत भी इजराइल के साथ ही खड़ा था। फिर तब रूस कहां जायेगा भारत से दूर ही तो। वैसे ही तालिबान~अफगानिस्तान संघर्ष के बीच भारत लोकतन्त्र विरोधी तालिबान के विरोध में खड़ा था जहां अमेरिका भी अफगानिस्तान के ही पक्ष में दिखाईं दिया था। आज मोदी सरकार में भारत का विदेशो के साथ कद तो बढ़ा है लेकिन चुनौतियां भी है जहां सदियों पुराना भारत का साथी छूट रहा है वही नया अमेरिका उसका जगह ले रहा है जिसका नेतृत्व जो बाइडेन कर रहे है। जो की भारत के सऊदी अरब के संबंध में दो चांद लगाने का काम कर रहा है। जबकि वही ईरान के साथ चुनौतियों का सामना करना पड रहा है क्योंकि न्यूक्लियर सप्लायर को लेकर जो प्रतिबंध अमेरिका ने ईरान पर लगाया है। जबकि भारत भी अमेरिका के सहयोग से न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप्स के भूमिका में आना चाहता है। वही तेल, पेट्रोलियम के कच्चे मैटेरियल के लिए भारत को अमेरिका पर निर्भर होना भारत में महंगाई का एक कारण भी है जिसका सीधा ~सीधी प्रभाव हमारे मार्केट मे दिखाई पड़ रहा है। अच्छे दोस्त के बावजूद भी इन साल अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक के द्वारा लगाया गया नया नियम टैक्स सिस्टम भारतीय रूपया को और कमजोर करेगा हालांकि भारत के आरबीआई के पास फॉरेक्स रिजर्व ज्यादा होने के बावजूद भी हमारा रूपया कमजोर क्यों इसका मात्र कारण अमेरिका को व्यापार अपने हिसाब से करने का है। आज भारत अमेरिका से रक्षा इक्विपमेंट खरीदारी करने में सबसे बड़ा देश है मोदी~ट्रम्प के दोस्ती ने इसमें और इजाफा किया है। अमेरिका में मोदी का जबरदस्त स्वागत का क्या था । मायने भारत में नमस्ते ट्रम्प का क्या था मायने। आज भारत पर अमेरिका ये प्रतिबंध लगा रहा है की आप कच्चा तेल पेट्रोलियम का खरीदारी केवल अमेरिका से करें ताकि पूरा तेल सप्लाई अमेरिका के माध्यम से एक तय दर पर पूरा विश्व में हो और ईरान को इस बाजार से दूर कर दिया जाए आर पूरा वैश्विक तेल बाजार अमेरिका के हिसाब से संचालित हो। जबकि ईरान में बनी रईस जो की एक कट्टरपंथी है के नेतृत्व में बनी सरकार इन सब को लेकर संकल्पित है और सारे इन प्रतिबंधों को खारिज करती है जिनको बधाई भारत के तरफ से पीएम और राष्ट्रपति भी दिए थे। चीन जहां भारत के साथ हमेशा सिमा विवाद मोल ही ले रहा है जो की पाकिस्तान को हमेशा सपोर्ट करता है उसके लिए भारत का संबंध रूस से होना बहुत जरूरी है। लेकिन अब भारत क्या करे अब बदलते परिवेश ने भारत को चुनौतियों के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है। भारत को रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध को मजबूत करने की जरूरत है तब ही तो कुछ हो सकता है और भारत मध्य एशिया में नेतृत्व भी कर सकता है जहां पर , रूस, चीन, मंगोलिया मजबूत है और साथ ही साथ उतरी कोरिया से भी अच्छा संबंध स्थापित कर सकता है। भारत का संबंध पूर्वी एशिया में सर्वोच्च नेतृत्व के रूप में हमेशा से पहचाना गया है जिसका स्थान चीन लेने के लिए सभी राष्ट्र जो की एशिया महाद्वीप में है उनको वन बेल्ट रोड, बी आर ई के अंतर्गत लाकर नेतृत्व कर भारत को यहां से रिप्लेस करना चाहती है जिसका समर्थन पाकिस्तान जोर से कर रहा है और चीन भी पाकिस्तान के साथ कदम से कदम मिलाकर प्रत्येक घड़ी खड़ा है क्यों नही वह डिफेंस का मामला हो या स्वास्थ्य का हो या शिक्षा का मामला हो। लेकिन भारत ने इन सभी के बीच इस कोरोना महामारी में सबको एक नजर से देखने का काम किया है और G~7 जैसे सगंठन में कोरोना वायरस विरोधी वैक्सीन के ज्यादा से ज्यादा उत्पादन के लिए who से ये गुजारिश किया की बौद्धिक सम्पदा जैसे अधिकार को हटाया जाए जो की वैक्सीन के खोज करने वाली कम्पनी को 20 साल के लिए मिलता है की उस वैक्सीन को जिस कम्पनी ने खोजी है वही उत्पादन करेगी केवल ।जिसका सभी देशों ने स्वागत किया जिससे विकासशील और छोटे राज्य जिनके पास फार्मास्यूटिकल मैटेरियल नहीं है वो भी इसका उत्पादान कर सके। जहां कोरोना वायरस जैसे खतरनाक वायरस का ओरिजिन चीन के वुहान लैब को माना जा रहा है जिसका विरोध चीन पूरा विश्व का झेल रहा है । तो वही अमेरिका~भारत एक दुसरे को वैक्सीन सप्लाई और फार्मास्यूटिकल कच्चा मैटेरियल को सप्लाई कर रहा है। तो रूस भी इस क्षेत्र में भारत को सहयोग दिया है ।रूस के sputnik~v भी भारत में कोरोना वायरस के टिका के रूप में लगाया जा रहा है। आज भारत मेडिकल क्षेत्र में दावा को लेकर सबसे ज़्यादा रॉ मैटेरियल पूरा विश्व को सप्लाई करता है।लियम के कच्चे मैटेरियल के लिए भारत को अमेरिका पर निर्भर होना भारत में महंगाई का एक कारण भी है जिसका सीधा ~सीधी प्रभाव हमारे मार्केट मे दिखाई पड़ रहा है। अच्छे दोस्त के बावजूद भी इन साल अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक के द्वारा लगाया गया नया नियम टैक्स सिस्टम भारतीय रूपया को और कमजोर करेगा हालांकि भारत के आरबीआई के पास फॉरेक्स रिजर्व ज्यादा होने के बावजूद भी हमारा रूपया कमजोर क्यों इसका मात्र कारण अमेरिका को व्यापार अपने हिसाब से करने का है। आज भारत अमेरिका से रक्षा इक्विपमेंट खरीदारी करने में सबसे बड़ा देश है मोदी~ट्रम्प के दोस्ती ने इसमें और इजाफा किया है। अमेरिका में मोदी का जबरदस्त स्वागत का क्या था । मायने भारत में नमस्ते ट्रम्प का क्या था मायने। आज भारत पर अमेरिका ये प्रतिबंध लगा रहा है की आप कच्चा तेल पेट्रोलियम का खरीदारी केवल अमेरिका से करें ताकि पूरा तेल सप्लाई अमेरिका के माध्यम से एक तय दर पर पूरा विश्व में हो और ईरान को इस बाजार से दूर कर दिया जाए आर पूरा वैश्विक तेल बाजार अमेरिका के हिसाब से संचालित हो। जबकि ईरान में बनी रईस जो की एक कट्टरपंथी है के नेतृत्व में बनी सरकार इन सब को लेकर संकल्पित है और सारे इन प्रतिबंधों को खारिज करती है जिनको बधाई भारत के तरफ से पीएम और राष्ट्रपति भी दिए थे। चीन जहां भारत के साथ हमेशा सिमा विवाद मोल ही ले रहा है जो की पाकिस्तान को हमेशा सपोर्ट करता है उसके लिए भारत का संबंध रूस से होना बहुत जरूरी है। लेकिन अब भारत क्या करे अब बदलते परिवेश ने भारत को चुनौतियों के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है। भारत को रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध को मजबूत करने की जरूरत है तब ही तो कुछ हो सकता है और भारत मध्य एशिया में नेतृत्व भी कर सकता है जहां पर , रूस, चीन, मंगोलिया मजबूत है और साथ ही साथ उतरी कोरिया से भी अच्छा संबंध स्थापित कर सकता है। भारत का संबंध पूर्वी एशिया में सर्वोच्च नेतृत्व के रूप में हमेशा से पहचाना गया है जिसका स्थान चीन लेने के लिए सभी राष्ट्र जो की एशिया महाद्वीप में है उनको वन बेल्ट रोड, बी आर ई के अंतर्गत लाकर नेतृत्व कर भारत को यहां से रिप्लेस करना चाहती है जिसका समर्थन पाकिस्तान जोर से कर रहा है और चीन भी पाकिस्तान के साथ कदम से कदम मिलाकर प्रत्येक घड़ी खड़ा है क्यों नही वह डिफेंस का मामला हो या स्वास्थ्य का हो या शिक्षा का मामला हो। लेकिन भारत ने इन सभी के बीच इस कोरोना महामारी में सबको एक नजर से देखने का काम किया है और G~7 जैसे सगंठन में कोरोना वायरस विरोधी वैक्सीन के ज्यादा से ज्यादा उत्पादन के लिए who से ये गुजारिश किया की बौद्धिक सम्पदा जैसे अधिकार को हटाया जाए जो की वैक्सीन के खोज करने वाली कम्पनी को 20 साल के लिए मिलता है की उस वैक्सीन को जिस कम्पनी ने खोजी है वही उत्पादन करेगी केवल ।जिसका सभी देशों ने स्वागत किया जिससे विकासशील और छोटे राज्य जिनके पास फार्मास्यूटिकल मैटेरियल नहीं है वो भी इसका उत्पादान कर सके। जहां कोरोना वायरस जैसे खतरनाक वायरस का ओरिजिन चीन के वुहान लैब को माना जा रहा है जिसका विरोध चीन पूरा विश्व का झेल रहा है । तो वही अमेरिका~भारत एक दुसरे को वैक्सीन सप्लाई और फार्मास्यूटिकल कच्चा मैटेरियल को सप्लाई कर रहा है। तो रूस भी इस क्षेत्र में भारत को सहयोग दिया है ।रूस के sputnik~v भी भारत में कोरोना वायरस के टिका के रूप में लगाया जा रहा है। आज भारत मेडिकल क्षेत्र में दावा को लेकर सबसे ज़्यादा रॉ मैटेरियल पूरा विश्व को सप्लाई करता है।
यें युवा पत्रकार संजय यादव का निजी विचार हैं
संजय यादव The स्टार इंडिया के संपादक है