राज्यसभा सदस्य और 71 वर्षीय वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल (Ahmed Patel) का बुधवार को निधन हो गया. वह 1 अक्टूबर को कोरोना संक्रमित पाए गए थे. हालत बिगड़ने के बाद उन्हें गुरुग्राम की मेदांता मेडिसिटी में भर्ती कराया गया था. इससे पहले फरीदाबाद के एक निजी अस्पताल में इलाज कराया गया था. राजनीतिक हलकों में ‘अहमद भाई’ या ‘एपी’ के रूप में लोकप्रिय पटेल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के शक्तिशाली राजनीतिक सचिव के रूप में कार्य करते थे.

कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के 10 साल के शासन के दौरान वह पर्दे के पीछे रह कर कांग्रेस के संकट का निवारण करते रहे.वह कभी भी मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं थे, फिर भी उन्हें किसी भी कैबिनेट मंत्री की तुलना में अधिक शक्ति मिली हुई थी.

सहयोगियों के लिए महत्वपूर्ण कड़ी थे AP
पटेल ने न केवल कांग्रेस और उसके सहयोगियों बल्कि पार्टी और मनमोहन सिंह की सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य किया. कॉर्पोरेट के साथ-साथ राजनीतिक नेताओं तक पहुंचने की उनकी क्षमता ने पूर्व पार्टी प्रमुख राहुल गांधी को भी अभिभूत किया.माना जाता है कि राहुल के पटेल से अच्छे रिश्ते नहीं रहे हैं. लेकिन उन्हें अगस्त 2018 में पार्टी के कोषाध्यक्ष के रूप में वापस लाया गया. साल 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस पार्टी का खजाना खाली हो गया था. पटेल से उम्मीद थी कि वे उद्योग घरानों सहित सभी क्षेत्रों से डोनेशन लेकर कांग्रेस को मजबूत लड़ाई लड़ने में मदद करेंगे.

अगर यूपीए के लिए प्रणब मुखर्जी दिखाई देने वाले संकटमोचक थे, तो पटेल पर्दे के पीछे रहकर अपनी जिम्मेदारी निभाते रहे. कथित 2 जी स्पेक्ट्रम नीलामी घोटाला हो या जुलाई 2008 में वामपंथी दलों द्वारा इंडो-यूएस परमाणु द्वारा वॉकआउट पटेल वह व्यक्ति थे जिस पर कांग्रेस पार्टी और सोनिया गांधी ने यूपीए सरकार को बचाने के लिए भरोसा किया था.

हालांकि उनका नाम कैश-फॉर-वोट घोटाले के दौरान उछाला गया था (जब भाजपा ने आरोप लगाया कि यूपीए के खिलाफ वामपंथी प्रायोजित अविश्वास प्रस्ताव के आगे सांसदों को नकद की पेशकश की गई थी), इस घोटाले की जांच करने वाले संसदीय पैनल उसके खिलाफ कुछ भी नहीं मिला.

गुजरात में लगाए गए आरोप
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 71 वर्षीय नेता से कई बार पूछताछ की थी. पटेल ने इसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा विद्वेष और प्रतिशोध करार दिया. एक ओर जहां पटेल का कद राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ गया वहीं गुजरात में कांग्रेस सिकुड़ गई और कई लोगों ने इसके लिए उनकी ‘उपस्थिति’ को जिम्मेदार ठहराया. आरोप है कि राज्य में कोई भी स्थानीय नेता नहीं पनप सकता था.

साल 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा एक संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किए गए पटेल ने भरूच (1977,1980 और 1984) का लोकसभा सदस्य के रूप में प्रतिनिधित्व किया था. साल 1989 के लोकसभा चुनावों में अपनी हार के कुछ साल बाद, उन्होंने 1993 में राज्यसभा में पहुंचे.

अगस्त 2017 में राज्यसभा के लिए उनका अंतिम चुनाव था. गुजरात से राज्यसभा की पहली दो खाली सीटों के लिए अमित शाह और स्मृति ईरानी को नामित किया गया था. तीसरी सीट कांग्रेस के उम्मीदवार को मिलनी थी. भाजपा ने न केवल तीसरे उम्मीदवार को उतारा, बल्कि कांग्रेस के छह विधायकों ने चुनाव से कुछ दिन पहले ही विधानसभा से इस्तीफा दे दिया, जिससे पटेल के लिए 44 वोट जीतना मुश्किल हो गया.

हालांकि उन्होंने चुनावों के दौरान वोटों की कमी को दूर कर दिया. उनके प्रतिद्वंद्वी ने कानूनी रूप से चुनाव को चुनौती दी. अपनी रणनीति और प्रबंधन कौशल के लिए जाने जाने वाले पटेल ने कई कठिन लड़ाईयां जीत ली जीते लेकिन कोरोना से हार गए.