जैसा कि हर बार देखा गया है कि, टीवी चैनलों पर भाजपा और उसके साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही पार्टियों को एकतरफा जीत दे दी जाती है या यूं कहें कि सत्ता सौंप दी जाती है, एग्जिट पोल के माध्यम से.

पिछले कुछ समय से टीवी चैनलों पर दिखाए जा रहे एग्जिट पोल का जनता द्वारा खूब मजाक उड़ाया जाता है. इसी को देखते हुए टीवी चैनलों द्वारा आज जारी किए गए एग्जिट पोल में बैलेंस बनाने की कोशिश की गई है. एबीपी न्यूज़ से लेकर आज तक और दूसरे टीवी चैनल पर जो बिहार और मध्य प्रदेश को लेकर एग्जिट पोल दिखाया गया है, उसमें अगर बात बिहार की की जाए तो बिहार में इस बार एक्जिट पोल में कांटे की टक्कर दिखाई जा रही है, जिसमें भाजपा और नीतीश कुमार के गठबंधन को महागठबंधन से थोड़ा सा अधिक दिखाया जा रहा है.

लेकिन बिहार चुनाव शुरू होने से पहले से अभी तक बिहार की जनता का जो रुझान सामने आ रहा है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बिहार में महागठबंधन की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने जा रही है. टीवी चैनल बैलेंस बनाने के लिए कांटे की टक्कर दिखाते हुए नीतीश कुमार और भाजपा के गठबंधन को भले ही थोड़ा आगे दिखा ले, लेकिन जैसा कि पूरे देश की जनता को पता है कि टीवी चैनल गोदी मीडिया के नाम से जाने जाते हैं और भाजपा के साथ-साथ टीवी चैनलों को भरोसा है कि, बिहार में ओवैसी फैक्टर के साथ-साथ दूसरी छोटी पार्टियां महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाएंगी.

लेकिन बिहार में इस बार ओवैसी फैक्टर बिल्कुल भी काम करने नहीं जा रहा है, इससे गोदी मीडिया के साथ-साथ भाजपा और उसके साथ गठबंधन में जुड़ी हुई पार्टियों को झटका लग सकता है. बिहार की मुस्लिम आबादी ने ओवैसी फैक्टर को पूरी तरीके से खारिज कर दिया है. मुस्लिम आबादी के ऊपर इस बार कांग्रेस के नेता इमरान प्रतापगढ़ी का जादू सर चढ़कर बोला है. इसके साथ साथ तेजस्वी यादव की धुआंधार रैलियां और तेजस्वी यादव द्वारा किया गया 1000000 सरकारी नौकरियों का वादा भी इस बार भाजपा गठबंधन को भारी पड़ता हुआ नजर आ रहा है.

बेरोजगारी और पलायन का मुद्दा भी इस बार हावी रहा है, जो भाजपा और उससे जुड़ी हुई गठबंधन की पार्टियों के विपरीत जाता हुआ दिखाई दे रहा है. लॉकडाउन के समय अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे बिहार के मजदूरों को जिस परेशानी का सामना करना पड़ा है, वह भी भाजपा और नीतीश कुमार को भारी पड़ता हुआ नजर आ रहा है. इसके साथ-साथ बिहार में चिराग पासवान के फैक्टर ने भाजपा और नीतीश कुमार को काफी नुकसान पहुंचाया है.

शुरुआती दो चरण में तो नीतीश कुमार की पार्टी के वोट भाजपा को ट्रांसफर हुए हैं, लेकिन आखिरी के चरण में नीतीश कुमार की पार्टी के वोट भाजपा को ट्रांसफर नहीं हुए हैं. जहां तक तीनों चरणों का सवाल है तो जो वोट बैंक भाजपा का है वह जहां चिराग पासवान के कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे थे वहां वह वोट बैंक नीतीश कुमार की पार्टी को ट्रांसफर ना होकर चिराग पासवान की पार्टी को ट्रांसफर हुआ है, जिससे नीतीश कुमार और भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

जैसा की जनता के रुझानों से पता चल रहा है कि भाजपा गठबंधन बिहार में हार रहा है और अगर बिहार में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनती है तो यह नीतीश कुमार कि नहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हार होगी. क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी फरवरी के महीने से ही लिट्टी चोखा के साथ बिहार का चुनाव प्रचार शुरू कर चुके थे. बिहार का चुनाव एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ रहा था.

अब बात अगर मध्यप्रदेश की करें तो, मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को सरकार बचाते हुए दिखाया जा रहा है एग्जिट में , यानी 15 से लेकर 18 तक सीटें शिवराज सिंह चौहान को दी जा रही है. जहां तक मध्यप्रदेश की बात है तो जब तक रिजल्ट नहीं आ जाता मध्यप्रदेश के नतीजों को लेकर तब तक कोई भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. क्योंकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस कभी भी बाजी पलटने की कंडीशन में चुनाव के समय थी.

कमलनाथ ने जिस रणनीति से यह उपचुनाव लड़ा है, उससे कहा जा सकता है कि भाजपा को सत्ता आसानी से नहीं मिलने वाली. मध्यप्रदेश में कांग्रेस या भाजपा कोई भी आसानी से सरकार बना नहीं पाएगा. कुल मिलाकर कितनी सीट किस पार्टी को आएगी यह तो 10 तारीख को ही क्लियर होगा. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में अगली सरकार नहीं बनेगी बिहार में तेजस्वी यादव अगले मुख्यमंत्री बनते हुए दिखाई दे रहे हैं. वहीं मध्यप्रदेश में 10 तारीख तक का इंतजार करना ही बेहतर होगा.