मीडिया, लोकतंत्र और विकास में इस तरह का संबंध होता है जैसे मानो की सब एक ही परिवार के सद्स्य है। लोकतन्त्र और संविधान का संरक्षक जहां मीडिया को माना जाता है तो वही लोकतन्त्र का आधार जनता होती है जो सरकार को चुनती है और विकस का सांचा चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में दे देती है जहां पर मीडिया एक ~दुसरे को सहयोग बीच मे कड़ी के रूप मे करती है। और सबका नेतृत्व मीडिया करती है क्यों नहीं वो जनता हो या सरकार। जनता के आवश्यकता के सरकार तक पहुंचाने का काम मीडिया ही करती है और सरकार के पॉलिसी को जनता तक पहुंचाने का काम भी मीडिया ही करती है विकास के बीच मे खड़ा होकर राष्ट्र के नेतृत्व में सत्यता को सामने लाने का काम मीडिया का ही है। किसी भी देश के कूटनीति मे भी मीडिया की भूमिका भी रणनीति साबित होता है। मेरा अनुभव कहता है की समाज मे रह रहे व्यक्ति को सभी जगह से विश्वास टूट जाता है तो अंत मे मीडिया पर ही भरोसा होता है और वो सभी सच्चाई मीडिया के सामने खोलने पर उतारू हो जाता है और मीडिया भी उस सच्चाई को सामने लाकर सत्य को साबित करती है। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है यहां पर विभिन्न प्रकार की जाति , धर्म , के लोग रहते है हमारा संविधान भी अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत इनको अभिव्यक्ति का आजादी देता है इसी अनुच्छेद के अन्तर्गत मीडिया को भी अभिव्यक्ति की आजादी है और इस अनुच्छेद के अन्तर्गत जनता और मीडिया एक ही अध्याय के अनुच्छेद है। आज भारत को आजाद हुए 75 साल होने वाले है हमारे यहां मीडिया भी कुछ हद तक स्वतंत्र है फिर भी मीडिया आज भी लोकतन्त्र के अंतिम परिधि तक पहुंच नही पाई है और आज भी हमारे देश में गरीबी , भुखमरी, बेरोजगारी चरम पर है और कुछ लोग वैसे भी है जो की अपना अधिकार भी नहीं पहचान पा रहे है। आज भी भारत मे वैसा समूह है जो मीडिया का सामना करना अपने आप को पाप समझता है। आखिर कब हम विकसित होंगे क्या एक विविधता वाला देश में , गाड़ी~मोटर, अच्छे कपड़ा, अच्छा स्कूल ही विकास है जो की कुछ ही लोगो के पास है जी नही ये विकास नही है मीडिया इन सब समाज मे कमी को कई बार सरकार के समक्ष रखने का काम की है लेकिन सरकार एक~एक पॉलिसी बनाकर सबको गुमराह कर देती है ?क्या ये सच्चाई नही है की डीपीएस स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा एक गरीब का लड़का नही होता है , वो कोई कूड़े बिनने वाला का लड़का नही होता है तो फिर मीडिया हो या जनसंचार का कोई भी माध्यम हो वो सच्चाई के जड़ तक पहुंचने में अभी काफी पीछे है। कहा जाता है की यदि जिस राष्ट्र मे, विधायिका, न्यायपालिका, और कार्यपालिका अपना काम करना बन्द कर दे तो मीडिया को ही दायित्व होता है की वो राष्ट्र को कुछ दिन सच के राह पर ड्राइव कर सके और राष्ट्र के विकास को अवरोध न होने दे । सामाजिक समरसता बनाए रखे , भाईचारा का पाठ पढ़ाए ताकी समाज मे कोई वैसी स्थिती पैदा न हो जाए की जिससे की समाज मे अफरातफरी मच जाए। ये बात बिहार के युवा पत्रकार संजय कुमार यादव कहते है