लोजपा में जो कुछ भी हो रहा है वो सब सत्ता में आकर मलाई चाभने के लिए हो रहा हैं।
जब फैसला मानना हीं नहीं था तो अध्यक्ष बनाया हीं क्यो था?
सवाल सिधा हैं अध्यक्ष बनाया किसने _आपने ।
जब चुनाव में हार हुई तब आपने इस्तीफा मांगा क्या _नहीं ।
बिहार में हार हुई नैतिकता और जिम्मेदारी के आधार पर इस्तीफा बिहार प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रिन्स पासवान को देना चाहिए , वो आज आपके साथ हैं।
जो रामविलास पासवान अपने 50 वषो के संसदीय जीवन में अपनी मेहनत के बल पर पाटी को खड़ा किये वो आप तोडने में लगे हुए है।
लेकिन आप कह रहे है पाटी टूटी नहीं हैं सिर्फ नेतृत्व बदला है ।नेतृत्व हीं बदलना था तो पाटी पदाधिकारीयो के साथ बैठकर बदल लेते।इसमें लोकसभा अध्यक्ष के पास जाने की जरूरत था।वैसे भी चिराग इस्तीफा देने आपके आवास पहुंच जाते है ।लेकिन आपका मकसद कुछ और था ।।

एका एक जब केन्द्रीय मंत्रीमंडल में विस्तार की भनक लगी तब समझ में आया की चिराग पासवान से पाटी सम्भल नहीं रहा है वो सब सत्ता में आकर मलाई चाभने के लिए हो रहा।

आज तक जदयू के नेता लोजपा को भाव देने को नही तैयार है। लेकिन ये लोग सत्ता में बनें रहने के लिए किसी तरह जदयू के साथ रहना चाहते हैं।

अगर देखा जाये तो चिराग के नेतृत्व में लोजपा भले सीटें न लायी हो लेकिन वोट प्रतिशत बढा है . करिब 25 लाख वोट विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिला था जो पहले के मुकाबले ज्यादा था
ये घटनाए उन 25लाख बिहारियो के साथ धोखा है जिन्होंने एक युवा नेता के ऊपर भरोसा किया था
जो पांच सांसद बाग़ी हुए उनमें दो इनके परिवार से है प्रिन्स पासवान और पशुपति पारस इनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा इतनी बढ गयीं की पार्टी तोडने पर आमद हो गये ।कुछ साल पहले बिहार सरकार में मंत्री थे फिर मंत्री बनना चाहते हैं सत्ता के लिए इतना ब्याकुल कुछ साल ये सत्ता के बगैर रह नहीं सकते है।
जो तीन और सांसद है महबूब अली कैंसर वीणा देवी और चंदन सिंह .महबूब अली कैंसर का राजनैतिक इतिहास हीं वैसा है कइ पाटीयो में घुम कर लोजपा तोड रहे है दुसरे वीणा देवी जो जदयू विधान पार्षद के पत्नी है।टिकट वैसे लोगों को देंगे तो हश्र क्या होगा ।एक चंदन सिंह है जो सूरजभान सिंह के छोटे भाई हैं लेकिन सब की सत्ता के प्रति लोलूपता यह परिणाम तक लेकर आया।
श्री सूरजभान सिंह दादा आप तो राजनीति के बड़े मझे हुये खिलाड़ी हैं काहा पड़े हैं नितीश कुमार के चक्कर में ये सिर्फ USED and THROW करतें हैं जिसका जिता जागता उदाहरण है मुन्ना शुक्ला, अनंत सिंह , प्रभूनाथ सिंह।

ये नरोत्तम सिंह का निजी विचार नरोत्तम सिंह गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के छात्र है।