ऑनलाइन का प्रभाव राष्ट्र के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है: आज हम सभी लोग 21वी शताब्दी मे बहुत खुशी से अपना जीवन यापन कर रहे है क्या हम मे से किसी ने भी ये सोचा है की न्यू मीडिया और तकनीकी का प्रभाव हमारे निजी जीवन पर कितना असर डालता है। भारत को संस्कृतियों, और विविधताओं का देश कहा जाता है यहां अनेको प्रकार की संस्कृतिया और धर्म ने अपने आप को सुरक्षित समझता है। लेकिन जब भारत मे नई आर्थिक नीति 1991 मे आती है तो बहुत सारा परिवर्तन हो जाता है हम व्यापार मे उदारवादी देश के साथ साथ नए तकनीक के दुनिया से भी रूबरू होते है। और आज इतना दुनिया आगे हो चुकी है की हम अपने से ही दूर होते जा रहे है हम अपना संस्कृति को भूलकर सुबह सुबह जाग कर माता~पिता का चरण स्पर्श न कर मोबाइल मे लग जाते है। आज दिन पर दिन रेप केस को बढ़ने में भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का हाथ है। बीबीसी के एक रिपोर्ट मे कहा गया है कि आज पूरी दुनिया मे सेक्स के प्रति लोगो का आकर्षण कम होते जा रहा है जिसका कारण भी आज की तकनीक है। बीबीसी का साफ कहना था कि लोग अपने मन के इच्छा को मोबाइल और लैपटॉप मे ही देख ले रहे है फिर उनका आकर्षण सेक्स पार्टनर के तरफ कम होते जा रहा है। दूसरा जॉब सिक्यूरिटी को लेकर खासकर भारत मे 30~35 उम्र तक सरकारी नौकरी के लिए तैयारी। शिक्षा को जहां सोशल मीडिया और तकनीक ने योगदान भी दिया है तो वहीं नुकसान भी हुआ है। अब बतलाइए कोई छात्र ऑनलाइन न्यूज पढ़ना चाह रहा है यदि वह पोर्टल खोलता है तो उसके पास अवश्यकता से ज्यादा खबरे खुल जायेगी जिससे उसका समय बर्बाद ही होगा। किसी भी राष्ट्र के सोशल डाटा को गलत प्रयोग मे लाना चुनावी एजेंडा बनाना। किसी के प्रति फेक खबरे बनाकर उसके चरित्र पर उंगली खड़ा करना सोशल सिक्यूरिटी का भी सबसे बड़ा मुद्दा है। आज तकनीक का ही बढ़ावा है की ड्रोन हमला तो आतंकवादी सगंठन का पुनः पनपना एक बहुत बड़ी राष्ट्र सुरक्षा के लिए समस्या पैदा कर रहा है। यह संसाधन का वैसा माध्यम हो गया मानो इसके बीना सबलोग आधे ~अधूरे है। हमारे बगल मे कौन बैठा है अब इसका अर्थ ही खत्म हो चुका है बल्कि अब हो गया है की फेसबुक, व्हाट्सएप पर कौन कौन ऑनलाइन है। मम्मी पापा रास्ते मे आगे इंतजार कर रहे है तो बेटा बेटी पीछे चैटिंग मे लगे हुए है। वही इस लॉकडाउन के कोरोना काल में ऑनलाइन , प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया और तकनीक का अनुप्रयोग बखूबी से किया गया और किया जा रहा है। शिक्षा को बढ़ोतरी तो वही ग्रामीण क्षेत्र मे नेटवर्क की समस्या। वही एक घर मे एक सिस्टम के चलते और लोगो का ऑनलाइन न जुड़ पाना। विद्यालय के क्षेत्र मे बहुत सारे लड़किया और लड़के का क्लास ड्रॉप हो जाना। ऑफलाइन क्लास का माहौल न रहना। रिसर्च को लेकर पीएचडी के छात्रों की समस्याएं। मीडिया कर्मियों को सीमित समय का रिपोर्टिंग टाइम देना। बहुत सारे अशिक्षित लोगो के अधिकारों के हनन ऑनलाइन समझ न होने के कारण । कुछ गिने चुने लोगो को लाभ मात्र , बेरोजगारी का आंकड़ा और बढ़ना ये सब एक मात्र कारण ही नहीं बल्कि और भी सारे कारण है। ऑनलाइन के माध्यम से हमारा व्यापार का नुकसान होना जैसे मै वस्तु कुछ और मंगाया था और आ कुछ और गई कितने लोग ये भी है की उनको अब रिटर्न करना हि नही आता है। स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा प्रभाव ऑनलाइन के जबाना मे हर घर में , धड़कन, आंख, और मांसपेशियों से संबंधित रोगी मिल जाएंगे जिसका एक मात्र कारण ऑनलाइन सिस्टम। आज लाइटिंग से मृत्यु के केसेज बहुत सारे आ रहे है जिसका कारण ऑनलाइन के नेटवर्क टॉवर , हिट वेव, और ग्लोबल वार्मिंग इत्यादि है। आज तो ऑनलाइन वेबपोर्टल का इतना ज्यादा प्रयोग होने लगा की लोकतंत्र का अर्थ ही खत्म हो गया है अब ये चुनाव के प्रचार प्रसार का भी एक माध्यम हो चुका है और जनतंत्र मे जनता का सबकुछ आज की ऑनलाइन पोर्टल हो गए है। सब कुछ के बावजूद लोगो से जुड़ने और अपने विचारधारा को प्रसारित करने का एक अच्छा माध्यम हो चुका है लेकिन अब जब एक डॉक्टर , शिक्षक, प्रोफेसर 24 घंटा में 4 घंटा , फेसबुक,इंस्टाग्राम, इत्यादि पर निकाल दे तो वो , क्या स्वास्थ्य , और शिक्षा, को अच्छे तरीके से देख पायेगा। फिर हेल्थ सिस्टम मे , और शिक्षा मे सुधार कहां हो पायेगा। स्टूडेंट के द्वारा ऑनलाइन पोर्टल पर कॉलेज का सीन कुछ और है और फिजिकली रूप से कुछ और ही है। फिर कहां सुधार हो पायेगा। इसलिए सरकार को एक पॉलिसी लाकर जनता फीडबैक के माध्यम से सुधार की पहल करने की जरूरत है। ये बात बिहार के युवा पत्रकार संजय कुमार का निजी विचार है।

                                                लेखक 

                                             संजय कुमार 

                                          मुख्य संपादक

                                        The स्टार इंडिया