भारत मे सार्वजनिक वितरण प्रणाली सफल नही अधिकारियो और डीलर ने तो मिलकर लूटा: सार्वजनिक वितरण प्रणाली अर्थात् पीडीएस सिस्टम के अन्तर्गत भारतीय खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित कर उचित लोगो को एक सही समय पर भारत सरकार द्वारा स्थापित और राज्य सरकारों के साथ संयुक्त रूप से भारत के गरीबों के लिए सब्सिडी वाले खाद्ध और गैर खाद्ध वस्तुओं का वितरण ~आपदा, गरीबी, युद्ध के समय दिया जाना है । इसकी देख रेख भारतीय खाद्य निगम के द्वारा किया जाता है जो एक सरकारी स्वामित्व वाली निगम है।1997 मे पीडीएस के अन्तर्गत आने वाला अनाज में मुख्य गेहूं, चावल, चीनी, और मिट्टी का तेल था जिसका संख्या आज घटकर गेहूं , चावल और मिट्टी का तेल केवल हो गया है। लेकिन आज के समय पीडीएस के अन्तर्गत जितना अनाज गरीबों के नाम पर वितरण किया जाता है , वह न तो पूरी रूप से गरीबों को मिल पाता है और न तो कोई उसका अच्छा क्वालिटी भी होता है। वास्तविकता तो यही है की ये अनाज आज जमीनी स्तर पर गरीबों को न मिलकर बल्कि अमीरों को ही मिलता है गांव के डीलर तो यहां तक भी तेज है की वो मृत लोगो के नाम पर भी राशन निकाल कर अपने अधिकार मे रख लेते है जिसका न तो सरकार जांच करती है और न ही तो अधिकारी ही और वो राशन वितरण दुकान वाला व्यक्ति इतना प्रॉपर्टीज अपने नाम कर लेता है की मै गिनती नहीं कर सकता हूं। कहा जाता है की आज गांवों में जिसके यहां पीडीएस दुकान है वो राजा होता है उसको किस चीज की कमी होती है और ये भी सच है की जब उसके पास एक बार पीडीएस दुकान आ जाए तो वो कई पीढ़ी चलती है। अब गलती यहां की जनता की होती होगी जो की तत्पर नही होते होंगे या वो व्यक्ति ही अधिकारियों के साथ मिलकर प्रत्येक साल पीडीएस दुकान अपने नाम करा लेता होगा। जिस बात और प्रक्रिया को एक आम जनता को मालूम नही होता है। आज भारत मे मूल रूप से गरीबी का एक कारण ये भी है की राशन का वितरण सही रूप से नही किया जाना। अब आप बताइए की सरकार 750अरब रूपए (13.8अरब$) प्रति वर्ष खर्च करती है। जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1प्रतिशत है तब भी अभी तक 21% लोग कुपोषित है। केंद्र सरकार अनाज को, खरीद, भंडारण परिवहन तो राज्य सरकार उचित मूल्य की दुकानों के नेटवर्क स्थापित कर उपभोक्ताओं तक वितरण की जिम्मेदारी संभालती है तो अधिकारी और राशन दुकान वाले अपने रोटी सेकने मे लगे होते है। पीडीएस योजना के तहत गरीबी से नीचे प्रत्येक परिवार हर महीने 35kg चावल या गेहूं के लिए पात्र है जबकि गरीबी रेखा से उपर एक घर मासिक आधार पर 15किलो खाद्य का प्रावधान है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे चल रहे धांधली को रोकने के लिए सरकार ने अक्टूबर 2013 मे एक ऑपरेशन ब्लैक नामक एक स्टिंग ऑपरेशन किया। इससे पता चला की कैसे वितरण उचित मूल्य के दुकानों के बजाए मिलो तक पहुंच जाता है जो की भारत जैसे गरीब देश के हित मे नही होता है यहां बहुत ज्यादा जनसंख्या मे कुपोषण से जूझ रहे लोग है उनको भी राशन नही मिल पा रहा है। मै दिल्ली जैसा उधोग वाले शहर मे देखा हू की किस तरह लोग सुबह चना चबाते है तो शाम को दाना के लिए मोहताज होते है सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सही रूप से लागू न हो पाना जो की एक महंगाई का भी कारण है। भारत की जनता धीरे ~धीरे इस तरह काल के गाल मे घूस गई है की वो अन्दर जायेगी तो दूसरे का आहार बनेगी और बाहर आयेगी तो कट जायेगी। जब आपका अधिकारी और पीडीएस दुकान वाला ही मिलकर सारा अनाज खा जा रहे है तो फिर आप ,वन नेशन , वन कार्ड लाइए या पूरा डिजिटलीकरण ही कर दीजिए ये भ्रष्टचार रूकने वाला नही है। और तो और भारत और धीरे ~धीरे गरीब हो जायेगा और यहां से कुपोषण तो जाने का नाम ही नहीं लेगा डीलर साहेब और अधिकारी जी आप दोनो ने तो इस तरह के चक्रव्यूह बनाएं है की लोग तो आप ही के जाल मे फंस जायेंगे और सबके सब पेट खाली पड़ जायेंगे पूरे भारत वर्ष कुपोषण के शिकार मे आपके कारनामो का गुणगान गाते गाते मर जायेगा। अब सबका सरकार ,अधिकारियों और राशन वितरण के व्यक्तियों पर से तो विश्वास ही उठ गया है और सबलोग ये बात कहते है की कोई भी सरकार आए हमलोग का लाभ नही है। अब बताइए शहर मे जिसके पास अच्छे प्रॉपर्टीज और मार्केट है उनको राशन मिलना जरूरी है गांवों में जिनके पास अच्छे प्रॉपर्टीज कहे तो 5,10,15, 20एकड़ जमीन है क्या उनको राशन मिलना जरूरी है मेरे को तो नही लगता है की इन सबको राशन की ज़रूरत पड़ती है बल्कि सच तो ये है की लोग इस राशन को खाते नही बल्कि दुकानों मे बेच देते है। और बगल मे वही जो उस राशन मिलने लायक है वो दूकान से जाकर राशन खरीद लाता है जो राशन खरीदने लायक नही था। आप जाकर बाजारों में जरूर देखे क्या हालात बनी हुई है भारत के आम जनता की। और वो राशन वितरण करने वाला डीलर इस तरह अपना राजनैतिक और आर्थिक स्थिति मजबूत कर लेता है की उसके विरोध किसी को बोलने को औकात नही और वो धीरे~धीरे क्षेत्र को बढ़ाकर पूरा जिले और राज्य का कमान संभालने लगता है। मै एक सुझाव दूंगा कि राशन को उचित परिवार को ही दिया जाए और जिस डीलर के पास एक साल राशन वितरण का दूकान रह चूका है और उसके बाद भी टेंडर मे नाम उसी का आता हो तो उसको न देकर गांव, पंचायत , शहर ,वार्ड मे उन लोगो को दिया जाए जो की गरीबी रेखा के नीचे हो यदि उनके पास घर न हो राशन रखने का तो उस क्षेत्र मे खाली किसी भी सरकारी आवास मे रखने के लिए इजाजत दिया जाए। और किसी के प्रति धांधली का खुलासा यदि एक लोग भी करें तो उनका फरियाद सुना जाए और उस पर अमल किया जाय तब जाकर होगा भारत का उद्धार नही तो बर्बाद हो जायेगा हमारा पूरा सिस्टम और हमारा मानव पूंजी धराशाही हो जायेगा। ये निजी विचार बिहार के युवा पत्रकार संजय कुमार का है।