मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा है कि कोरोना के दौर में ये पहला चुनाव होगा. हमारे लिए लोगों की सुरक्षा अहम मुद्दा है, लेकिन साथ की चुनाव लोगों को लोकतांत्रिक अधिकार है.

मतदान का वक्त एक घंटे बढाया जाएगा, सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक वोटिंग होगा, वहीं कोरोना के मरीज भी वोट डाल सकेंगे. प्रचार में सोशल डिस्टेंसिंग का खास ख्याल रखा जाएगा. वहीं उम्मीदवार ऑनलाइन नामांकन कर सकेगें. पांच से ज्यादा लोग घर में जाकर प्रचार नहीं कर पाएंगें. चुनाव प्रचार वर्चुअल होगा.

बिहार में चुनावी महासंग्राम का आगाज हो गया है. बताया गया कि बिहार में तीन चरणों में मतदान होगा. पहले चरण में 71, दूसरे में 94 सीटों पर मतदान होगा. CEC सुनील अरोड़ा ने बताया कि तीसरे चरण में 78 सीटों पर चुनाव होंगे. क बार फिर मुकाबला नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए बनाम तेजस्वी की अगुवाई में महागठबंधन के बीच है.

मतदान के अंतिम समय में कोरोना पीड़ित अपना वोट डाल सकेंगे, जिनके लिए अलग व्यवस्था होगी. प्रचार मूल रूप से वर्चुअल ही होगा, लेकिन डीएम छोटी रैली की जगह और वक्त तय करेंगे. हर पोलिंग बूथ पर साबुन, सैनिटाइजर समेत अन्य चीजों की व्यवस्था की जाएगी.

सुनील अरोड़ा ने कहा कि बिहार चुनावों को लेकर भी सवाल उठ रहे थे लेकिन आज हम आपके सामने बड़े राज्यों में से एक बिहार के लिए चुनाव की तारीखों की घोषणा करने जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक पोलिंग बूथ में 1500 की बजाय एक हजार वोटर्स आएंगे, जिससे पोलिंग बूथ की संख्या बढ़ेगी. चुनाव आयुक्त ने बताया कि आज से आचार संहिता लागू हो चुकी है.

कोरोना की वजह से इन बातों का रखा जाएगा ध्यान

कोरोना के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रखा जाएगा, एक बूथ पर एक हजार मतदाता होंगे, पोलिंग बूथ पर मतदाताओं की संख्या घटाई गई, नए सुरक्षा मानकों के साथ इस बार के चुनाव होंगे, अंतिम समय में वोट डाल पाएंगे कोरोना के मरीज, 6 लाख पीपीई किट का इस्तेमाल किया जाएगा, 7 लाख सैनेटाइजर्स का इस्तेमाल होगा, 46 लाख मास्क का इस्तेमाल होगा.

आपको बता दे कि बिहार में कुल मतदाता 7 करोड़ 79 लाख हैं, जिसमें 3 करोड़ 79 लाख महिलाएं हैं. वहीं बिहार में पुरुष वोटरों की संख्या 3 करोड़ 79 लाख है. बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होगा. 2015 में आरजेडी और जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसकी वजह से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को हार का सामना करना पड़ा था. तब आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस महागठबंधन ने 178 सीटों पर बंपर जीत हासिल की थी.

आरजेडी को 80, जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं थीं, जबकि एनडीए को 58 सीटें हीं मिली. हालांकि लालू यादव से दोस्ती तोड़ने के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए का चेहरा हैं. बिहार में पिक्षी पार्टियां कोरोना के चलते चुनाव टालने की मांग कर रही थी, लेकिन आयोग ने इस मांग को खारिज कर दिया. वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है.

2015 में साथ लड़े थे राजद और जदयू

2015 के चुनाव में राजद जदयू और कांग्रेस साथ मिलकर महागठबंधन बनाया था. इस गठबंधन को 178 सीटें मिलीं थी. लेकिन, डेढ़ साल बाद ही नीतीश महागठबंधन से अलग होकर एनडीए में चले गए. इस चुनाव में एनडीए में भाजपा, लोजपा और हम (सेक्युलर) के साथ जदयू भी है. वहीं, पिछले चुनाव में एनडीए का हिस्सा रही रालोसपा महागठबंधन के साथ है.

इस बार वोट डालने के लिए एक घंटा अधिक वक्त रखा गया है, सुबह सात से शाम 6 बजे तक मतदान होगा. लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ऐसा नहीं होगा. डूर टू डूर कैंपेन में सिर्फ पांच लोग ही जा सकेंगे. इस बार नामांकन और हलफनामा ऑनलाइन भी भरा जाएगा, डिपोजिट को भी ऑनलाइन सबमिट किया जा सकेगा. नामांकन के वक्त उम्मीदवार के साथ सिर्फ दो लोग मौजूद रहेंगे. प्रचार के दौरान किसी से हाथ मिलाने की इजाजत नहीं होगी.

बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार को उम्मीद है कि वो एक बार फिर सरकार में वापसी करेंगे, तो वहीं तेजस्वी की अगुवाई में विपक्ष एनडीए के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. बिहार में अब जब विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं, तो ऐसे में चुनाव से जुड़ी कुछ अहम बातों पर गौर कीजिए. पिछले विधानसभा चुनाव से अलग इस बार सिर्फ मतदान ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों और गठबंधनों में भी काफी कुछ बदला-बदला सा नज़र आएगा. जो पिछले चुनाव में साथ लड़े थे, इस बार आमने-सामने हैं.

मुख्यमंत्री पद के दावेदार

नीतीश कुमार: 2010 के चुनाव में नीतीश एनडीए की ओर से तो 2015 में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा थे. इस बार फिर वो एनडीए की ओर से सीएम फेस होंगे. पिछले 15 साल से राज्य में नीतीश की पार्टी सत्ता में है. इनमें 14 साल से ज्यादा नीतीश ही मुख्यमंत्री रहे हैं.

तेजस्वी यादव: महागठबंधन की ओर से इस बार तेजस्वी यादव चेहरा हो सकते हैं. लालू यादव के जेल जाने के बाद महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राजद का चेहरा तेजस्वी ही हैं. हाल ही में, राजद के पार्टी कार्यालय के बाहर चुनाव से जुड़ा जो पोस्टर लगाया गया उसमें अकेले तेजस्वी नजर आ रहे थे. पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का चेहरा पोस्टर से गायब था.

चुनाव प्रचार के चेहरे

नरेंद्र मोदी: भाजपा ने 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद से हर चुनाव में मोदी ही भाजपा के लिए प्रचार का प्रमुख चेहरा रहे हैं. उनकी रैलियां भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का बड़ा जरिया रही हैं. इस बार बड़ी रैलियां होना मुश्किल है. ऐसे में मोदी की वर्चुअल रैलियां वोटर्स पर कितना असर डालती हैं ये देखना होगा.

नीतीश कुमार: जदयू और उससे पहले समता पार्टी के दौर से ही नीतीश हर चुनाव प्रचार में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं. इस चुनाव में एनडीए गठबंधन उनके ही चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगा.

तेजस्वी यादव: चुनावी राजनीति में महज पांच साल का अनुभव रखने वाले तेजस्वी यादव के हाथ में इस बार के चुनाव प्रचार की कमान होगी. राजद के गठन के बाद ये पहला विधानसभा चुनाव होगा जब पार्टी लालू के बिना लड़ेगी.

राहुल गांधी: राहुल गांधी भले कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हैं लेकिन, चुनाव प्रचार में वो कितने सक्रिय रहते हैं इस पर नजर रहेगी. प्रियंका गांधी के चुनाव प्रचार पर भी सभी की नजर रहेगी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तबियत को देखते हुए पार्टी राहुल और प्रियंका गांधी को आगे कर सकती है.

चिराग पासवान: लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान चुनाव प्रचार में अपनी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा होंगे. एनडीए युवाओं और दलितों को लुभाने के लिए उनका इस्तेमाल कर सकता है. हालांकि, पासवान और उनकी पार्टी की ओर से जिस तरह सीटों के लेकर बयान आ रहे हैं उससे तय है कि एनडीए में सीटों का बंटवारा इतना आसान नहीं होने वाला है.

चुनाव के बड़े मुद्दे

कोरोना के बीच हो रहे इन चुनावों में कोरोना भी मुद्दा होगा. तेजस्वी यादव कोरोना को लेकर लगातार सरकार पर हमला कर रहे हैं. कोरोनाकाल में नीतीश कुमार के घर से बाहर नहीं निकलने को भी उन्होंने मुद्दा बनाया है. वहीं, नीतीश की ओर से सरकार द्वारा पिछले छह महीने में उठाए कदमों को गिनाया जा रहा है. केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े दो नए बिल भी इन चुनावों में बड़ा मुद्दा होंगे.

राजद बेरोजगारी के मुद्दे को लगातार उठा रही है. प्रधानमंत्री के जन्मदिन को राजद ने राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के रूप में मनाया. नीतीश सरकार लॉकडाउन के दौरान बिहार लौटे प्रवासियों से बिहार में ही रोजगार देने का दावा कर रही है. जदयू और भाजपा जहां पिछली केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से किए गए कामों को गिना रहे हैं. वहीं, राजद पिछले 15 साल में किए विकास के दावों को लगातार चुनौती दे रहा है.

लॉकडाउन के दौरान बिहार लौटे प्रवासी मजदूरों का मुद्दा भी इस चुनाव में अहम होगा. सरकार जहां इन्हें प्रदेश में ही हर संभव मदद देने की बात कर रही है. वहीं, विपक्ष प्रवासियों के लिए समुचित इंतजाम नहीं करने पर सवाल उठा रहा है. पिछले 30 साल से चुनावी मुद्दा रहा राम मंदिर इस बार भी बड़ा मुद्दा बना रहेगा. फर्क सिर्फ इतना होगा कि इस बार भाजपा इसके शिलान्यास को अपनी बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाएगी.