अफगानिस्तान और तालिबान के संघर्ष के बीच भारत किस ओर: आज पूरा विश्व जहां कोरोना वायरस जैसे महामारी से जंग लड़ रहा है तो वही अफगानिस्तान और तालिबान के बीच आंतरिक संघर्ष जारी है।अमेरिका के द्वारा अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से बुलाने के बाद ये तालिबानी आतंकी संगठन ने और भयानक दृश्य बना दिया है अफगानिस्तान के महत्वपूर्ण जगहों पर लगभग 193 जिलों पर हमला कर अपना अधिकार जता रहा है। इन दिनो तालिबानी सगंठन भारत~ अफ़गानिस्तान के कश्मीर के पास वाला अफगानिस्तान के जगहों पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया है जो की भारत के राजनीतिक खतरा का संकेत है क्योंकि वही जहां तालिबानी आधिपत्य है तो वही चीन का क्षेत्र तिब्बत भी और पाकिस्तान के साथ बॉर्डर भी अफगानिस्तान~चीन~~पाकिस्तान ~भारत की सीमा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। तो भारत के रिश्ते भी इन दिनो अमेरिका से अच्छा है जब अमेरिका अफगानिस्तान से सैनिक शक्ति हटायेगा और तालिबान का अफगानिस्तान पर आधिपत्य हो जायेगा तो भारत किस ओर जायेगा क्योंकि भारत करोड़ो रूपए लगाकर जो चाबहार पोर्ट बना रहा था उसका क्या होगा भारत के द्वारा लगाए गए निवेश का क्या होगा। अमेरिका के सैनिक शक्ति हटते ही अफ़गानिस्तान मे उस खाली शक्ति को भरने का काम चीन या रूस कर सकते है, तब उस समय भारत कहा जायेगा क्योंकि भारत ने क्वाड जैसे सगंठन बना कर जिस तरह अपना हिंद प्रशांत क्षेत्र मे शक्ति बढ़ाना चाहता है जिससे चीन, रूस, और पाकिस्तान हिंद प्रशान्त से अलग थलग हो जाता है। वही यूरेशिया (यूरोप+एशिया) के लिए हिंद प्रशान्त सेंट्रल ब्लॉक है जहां रूस और चीन पॉवर ब्लॉक बनना चाहता है जहां पर क्वाड सदस्यों की आवश्यकता जरूरी पड़ती है। वही रूस को ये भी डर है की सेंट्रल एशिया मे पॉवर फुल होने के लिए ईरान और अफगानिस्तान का सपोर्ट जरूरी है यदि तालिबान आता है तो उसके साथ ही लेकीन ईरान (सिया )समर्थित राष्ट्र है, वही जबकि ईरान का संबंध अमेरिका के प्रति भी इरेस्पेक्टिव है फिर ईरान समर्थन तालिबान या अफ़गानिस्तान को करेगा। इन दिनो भारत की अंतराष्ट्रीय सुरक्षा का मामला तालिबान के साथ ही राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण साबित लग रहा है। जबकि दूरदर्शी रूप से अमेरिका और रूस को देखते हुए डिफाइन करना होगा आज जब तालिबान के आतंकी सगंठन के इफेक्टेड लोगो का ईलाज पाकिस्तान मे किया जा रहा है जिससे भारत न जाने कितना युद्ध लड़ चुका है। जिसको यूएन ने भी नकारा है। अफगानिस्तान का बाहरी सीमा लगभग सेन्ट्रल एशिया के महत्वपूर्ण देशों के साथ अपना सीमा शेयर करता है। जो प्राकृतिक संसाधन कम रखते हुए भी सबके लिए महत्वपूर्ण है जो चीन के वन बेल्ट रोड इनिशिएटिव का भी सद्स्य है। अमेरिका के साथ किसी का भी अच्छा संबंध क्यो ना हो वो अपना ही हित देखता है आज किस तरह अमेरिका तालिबान को अलकायदा आतंकी सगंठन का सहयोग न देने का बात पर राजी कर अफगान को खतरा मे डाला है। आज भारत के लिए स्थिति और गम्भीर होती जा रही है। भारत के पास आज मुख्य समस्या ,आतंकवाद है जिसका सगंठन ही तालिबान है। किए गए निवेश का अफगानिस्तान मे क्या होगा? आज भारत के लिए सबसे चुनौती पूर्ण समस्या बनती जा रही जरूरी है की भारत मल्टीट्रैक विदेश नीति अपनाए। किस तरह आज तालिबानी सगंठन से तंग अफगानिस्तान के लोग ने अपना जीवन का अधिकार भी छोड़ दिए है तालिबान का महिलाओं और लड़कियों के प्रति रवैया एक दिन मानवता को तार तार कर देगा।तालिबान का अफगानिस्तान पर आधिपत्य चीन, पाकिस्तान के हित मे ही साबित होगा और एक समय ये न आ जाए की हिंद प्रशान्त महासागर मे तालिबानी सगंठन का चीन के माध्यम से वर्चस्व कायम हो जाए। जो की भारत जैसे लोकतान्त्रिक और विविधता वाले राज्य को अपने आप को सुरक्षा को लेकर दूसरे राज्य का सहयोग लेना पड़े। भारत और रूस के बीच रिश्तों का अब क्या होगा क्या रूस भारत का साथ देगा या वो भी सेन्ट्रल एशिया में लीडरशिप के लिए तालिबान के साथ ही जायेगा? या कहे की कही तालिबान को रोकने के लिए अफ़गानिस्तान के नेता नीति कुछ दूसरा तो नहीं बनाए है जिसको काबुल पहुंचते पहुंचते तालिबान पर नियंत्रण पा जाए। लेकिन एक बात सच है की पश्चिम राष्ट्र के नेताओं का संबंध एक दूसरे से तब ही अच्छा रहेगा जब उसको कुछ , आर्थिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, और राजनीतिक रूप से लाभ हो वरना ओ किसी के न तो अच्छे दोस्त हो सकते है और न ही तो पड़ोसी। ये नीजी विचार उभरता हुआ बिहार के युवा पत्रकार संजय कुमार का ।