मिल्खा सिंह(20 नवम्बर,1929_18 जून,2021) का जन्म उस समय के अविभाजित भारत के पंजाब में एक सिख राठौर परिवार में हुआ था जो की अब पकिस्तान के गोविंदपुर है। उनके भाई_ बहन बाल्यकाल में ही गुजर गए थे अपने भाई मलखान के दिए गए सुझाव को मानते हुए मिल्खा ने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया और चौथी कोशिश के बाद सन् 1951में भर्ती हो गए। मिल्खा सिंह के परिवार भाई_बहन, और मां_बाप को विभाजित पकिस्तान में कत्ल कर दिया गया था। तब मिल्खा परिवार सहित भागकर पुनः भारत लौट आए। सेना में रहते हुए ही उन्होंने अपने कौशल को और निखारा। एक क्रॉस_कंट्री दौड़ मे 400 से अधिक सैनिको के साथ दौड़ने के बाद छठे स्थान पर आने वाले मिल्खा सिंह को आगे की ट्रेनिंग के लिए चुना गया, जिसने प्रभावशाली कैरियर की नींव रखी।1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार प्रयास किया भले ही उनका अनुभव अच्छा न रहा हो लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर फलदायक साबित हुआ।200m और 400m की स्पर्धाओ में भाग लेने वाले अनुभवहीन मिल्खा सिंह गर्मी के स्टेज से बाहर नहीं निकल सके, लेकिन चैम्पियन चार्ल्स जेनकिंस के साथ एक मुलाकात ने उन्हें अपने भविष्य के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा और ज्ञान दे दिया। मिल्खा सिंह ने जल्दी ही अपने ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया और 1958 में उन्होंने जबरदस्त एथलेटिक्स कौशल प्रदर्शन किया जब उन्होंने कटक में नेशनल गेम्स ऑफ इण्डिया में अपने 200मीटर और 400मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। मिल्खा सिंह ने राष्ट्रीय खेलों के अलावा टोक्यो में आयोजित 1958 एशियाई खेलों में 200 मीटर और 400मीटर की स्पर्धाए में और 1958 के ब्रिटिश साम्राज्य और राष्ट्रमंडल खेलों में 400मीटर में स्वर्ण पदक जीते । उनका ये सफलता ही थीं की जिसके वजह से उन्हें उसी वर्ष पदश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सेवानिवृति के बाद मिल्खा सिंह पंजाब में खेल निर्देशक के पद पर थे। एक समय है उपाधि के टाइम का जब उनको पाकिस्तान में दौड़ने का ऑफर मिला था उस समय मिल्खा वहां जानें पर हिचकते थे जो घटनाएं वो बचपन में देख चुके थे उससे । लेकिन न जाने पर राजनीतिक उथल पुथल के डर से उन्हें जानें को कहा गया । उन्होंने दौड़ने का न्यौता स्वीकार कर लिया। दौड़ में मिल्खा सिंह ने अपने प्रतिद्वंदियो को ध्वस्त कर दिया और आसानी से से जीत गए । अधिकांशत: मुस्लिम दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्का ओढ़ी मुस्लिम महिलाएं भी अपनी बुर्का उठाकर इस महान् धावक को गुजरते देखने के लिए अपने नकाब उतार लि थी , तभी से उन्हें फ्लाइंग सिख की उपाधि मिली। मिल्खा सिंह ने बाद में खेल से सन्यास लें लिया था और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। अब वे चंडीगढ़ में रह रहे थे। इनके जीवन पर जानें माने फिल्म निर्माता, व निर्देशक और लेखक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने वर्ष 2013 में इनपर ,भाग मिल्खा, भाग नामक फिल्म बनाई। ये फिल्म बहुत चर्चित है आज भारत के हर घर में मिल्खा सिंह का गुणगान बच्चो को कहानी के रूप में सुनाया जाता है। मिल्खा सिंह को जब कहा गया की आप अपने कहानी के उपर कितना रूपया लेंगे तो मिल्खा सिंह ने मात्र एक रूपया लिया था। मिल्खा सिंह के पसंद का खाना दूध था वो अपने डायट में अधिक मात्रा में दूध का सेवन करते थे। आज मिल्खा सिंह कई दिनों से कोरोना संक्रमित थे अचानक तबियत खराब होती है और उनको चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भरती कराया गया था। जहां मिल्खा सिंह ने अपना अंतिम सांस ली। सन्नाटा है सबकी नजरें उस ट्रैक पर हिंदुस्तान के उम्मीद मिल्खा सिंह तेरी नश नश लो हाहाकार तू है आग मिल्खा, वो बस तू भाग मिल्खा भाग। पत्रकार: संजय कुमार