जब 1 साल से पूर्णत बंद है कॉलेज , विश्विद्यालय तो छात्र TC कहां से लाए: कहा जाता है की शिक्षा व्यवस्था मे भारत की स्थिति अच्छा है यहां से प्रत्येक साल अच्छे डॉक्टर और अभियंता पूरे विश्व मे सेवा देते है। और यहां तक कि हमारे प्रधानमन्त्री भी परीक्षा के समय TV चैनल पर आकर एक अच्छा भाषण देते है और अपने संबोधन मे पूरा छात्रों और पूरा छात्र परिवार को ये समझा जाते है की आप परीक्षा के समय छात्रों को टेंशन न दे। पूरे दबाव से बाहर आकर छात्र तैयारी करें। लेकिन इन सब बातो का कोई ख्याल नही कितने खासकर प्राइवेट संस्थान इस तरह के है जो नामांकन के समय स्पष्ट रूप से डॉक्यूमेंट नही मांग पाते है लेकिन परीक्षा के समय ये दबाव देने लगते है की आप अपना टी .सी और माइग्रेशन लाइए नही तो आप परीक्षा से वंचित हो जायेंगे। अब बतलाइए आप नामांकन के समय बोलते नही है और आज जब कल से पेपर होना है तो आप छात्रों पर दबाव डाल रहे है ।अब ये कहां का नियम है की छात्र अपने कॉलेज से मिलो दूर पहले वाला कॉलेज जाए और टीसी लाए जबकि इस कोरोना काल मे छात्र खुद ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर खुद दबाव मे रह चुके है। कमसे कम कॉलेज और विश्विद्यालय को तो समझनी चाहिए की जब हम टीसी अपने छात्रों को देते है तो कैसी कैसी शर्ते रखते है की तुम्हारा ये बिल बाकी है तो वो बिल बाकी है तुम इतना रूपया लाओ तब टीसी मिलेगी। अब उधर परीक्षा शुल्क देना है तो इधर ये सब बिल देना है अब इसी सब दुविधा मे छात्र कहीं कॉलेज ड्रॉपआउट कर लेता है तो कहीं आत्महत्या इन सब आंकड़ों पर भी विश्विद्यालय, कॉलेज, तथा सरकार को ध्यान देने की जरूरत है वरना हमारे देश और राज्य का सामाजिक विकाश अवरुद्ध हो जायेगा हम अच्छे डॉक्टर तो दूर अच्छे कर्मचारी भी नहीं दे पाएंगे। कॉलेज को नामांकन समय ही एक निश्चित समय मे डॉक्यूमेंट ले लेना चाहिए न तो छात्र की परेशानी होती और न ही तो आपकी। अब इस कोरोना के जंग से बाहर निकला छात्र आपको रूपया और डॉक्यूमेंट कैसे दे जब खुद सारा कॉलेज और उसके आर्थिक साधन का माध्यम नष्ट हो चुका है क्या सरकार को एग्जाम शुल्क माफ नही करना चाहिए। कितने सरकार तो सारा शुल्क माफ करके अपने छात्रों को प्रोमोट कर दे रही है जो की कुछ हद तक सही नही । जो ये कोई पास होने का माध्यम नही है इससे भी हमारे राष्ट्र का विकास अवरूद्ध होता है। खासकर बिहार जैसे राज्य में जहां की बहुत दूर दूर तक खोजने के बाद कोई अच्छा कॉलेज मिल जाता है, तभी एडमिशन कहीं और चल रहा होता है, जो की एक गम्भीर समस्या है भारत के बिहार, झारखंड जैसे राज्यो का। अब सरकार को ये दायित्व होता है की वो अपने कॉलेज और विधार्थी के बीच इस तरह के समन्वय स्थापित करें ताकि गुरू शिष्य का संबंध सही रूप से चल सके वरना समाज के प्रतिष्ठित पद का इज्जत हमारे समाज मे बरकरार रहे । अब बताइए उसी के उपर ये भी की आप एफिडेविट कराकर लाए की मै टीसी और अपना डॉक्यूमेंट इतने दिन मे दे दूंगा अब बताइए वो लड़का का कल पेपर है और वो आज न्यायालय जाकर अपना दुखड़ा सुनाए इस तरह के सिस्टम को हम शत प्रतिशत नकारते है इस तरह की व्यवस्था हमे नही चाहिए हमारा अधिकार है की हम आपसे कुछ कह सके और अपना अधिकार का मांग कर सके । आज इन सब अधिकारी राज्य का ही परिणाम है की हमारा दिमाग दिन पर दिन और कमजोर होता जा रहा है और दिन पर दिन ड्रॉपआउट का मामला आ रहा है । आज पूरा कोरोना काल मे लाखो में ड्रॉपआउट छात्र हुए है जिसका एक मात्र कारण गम्भीर नियम कानून के साथ ~साथ उनके आसपास के जिलों में अच्छा संस्थान न हो पाना जिससे की वो पढ़ाई कर सके। अब कहां है सरकार और कहां है उनके वादे सब केवल चुनाव के मेनिफेस्टो पर ही दिखाई देता है। ये निजी विचार युवा पत्रकार संजय कुमार का आवाज है।