भारत में कोरोना वैक्सीन को बिना क्लिनिकल ट्रायल पूरा किए मंज़ूरी दिए जाने को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य और औषधि विशेषज्ञों ने भी वैक्सीन से जुड़े ज़रूरी डेटा न होने के बावजूद दी गई मंज़ूरी पर सख़्त ऐतराज़ जताया है।
वेल्लूर मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और महामारियों के खिलाफ वैक्सीनों से जुड़े ग्लोबल संगठन CEPI की उपाध्यक्ष डॉ. गगनदीप कांग ने तो इसपर हैरानी जताते हुए यहां तक कह दिया है कि वो भारत बायोटेक द्वारा बनाई गई कोवैक्सीन को तब तक नहीं लगवाएंगी जब तक इसके प्रभाव के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते। उन्होंने ये बातें न्यूज़ वेबसाइट ‘द वायर’ को दिए एक इंटरव्यू में कहीं।
उन्होंने स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन के आपात इस्तेमाल के लिए मंज़ूरी दिए जाने पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि वैक्सीन के अब तक के ट्रायल पर सार्वजनिक रूप से किसी साइंस जर्नल में कोई भी डेटा नहीं है। इसके बावजूद डीसीजीआई ने इसे मंज़ूरी कैसे दे दी?
प्रोफेसर गगनदीप कांग ने कहा कि डेटा के बिना किसी भी वैक्सीन को मंज़ूरी नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि स्वदेशी वैक्सीन को बिना डेटा के गलत तरीके से मंज़ूरी दी गई है।
डॉ. कांग कोवैक्सीन के साथ ही SII की कोविशील्ड पर भी सवाल ख़ड़े करते हुए कहती हैं कि दोनों वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने वैक्सीन के प्रभावी होने को लेकर कोई भी प्रमाण या आंकड़े नहीं दिए हैं। ऐसे में यह बात कैसे कही जा रही है कि वैक्सीन के दो डोज़ लेने होंगे?
कांग ने माना कि कोविशील्ड को लेकर देश के बाहर कुछ जानकारियां प्रकाशित हुईं। साथ ही, यह भी कहा कि असल समस्या कोवैक्सीन के डेटा को लेकर है।
कोविशील्ड के बारे में जो भी जानकारियां हैं, उनसे कम से कम यहां तक तो पहुंचा जा सकता है कि वैक्सीन 50 फीसदी से ज़्यादा तो असरदार पाई ही गई, लेकिन ‘भारत बायोटेक की वैक्सीन संबंधी कोई स्टडी कहां है?’
कांग ने कहा कि उन्हें अपनी वैक्सीन इंडस्ट्री पर गर्व रहा है, लेकिन ये जो हो रहा है, वो उनकी प्रतिष्ठा के लिए ठीक नहीं है। हम कैसे रूस और चीन से खुद को अलग साबित कर पाएंगे, इसका जवाब नहीं मिल रहा है।