किसान आंदोलन में ‘गोदी मीडिया’ मुर्दाबाद के नारे लगाए जाने के बाद गोदी मीडिया शब्द पर चर्चा एक बार फिर छिड़ गई है। इस शब्द को लेकर पत्रकारों से सवाल किए जा रहे हैं।

हाल ही में आजतक के एंकर रोहित सरदाना से लाइव चैट के दौरान एक दर्शक ने गोदी मीडिया शब्द के बारे में सवाल पूछा था। तब उन्होंने इसके जवाब में गोदी मीडिया कहने वालों को ही काउंटर किया था। उन्होंने कहा था कि गोदी मीडिया वो लोग कहते हैं जिनकी गोद में हम नहीं बैठे।

सरदाना के इस तर्क की मानें तो गोदी मीडिया शब्द का इस्तेमाल ज़्यादातर विपक्षी नेताओं द्वारा किया जाता है, सत्तापक्ष के नेता इस शब्द का प्रयोग नहीं करते।

यानी मीडिया के एक तबके ने मोहल्ले की लड़की की तरह सत्तापक्ष के प्रपोजल को एक्सेप्ट कर लिया है और बाकियों को मना कर दिया है। इसलिए वो मीडिया को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।

सरकार के इसी प्रपोजल को एक्सेप्ट करने वाली मीडिया को लोग गोदी मीडिया कहते हैं। यानी सरकार की जी हुजूरी करने वाली मीडिया। वो मीडिया जो सत्तारूढ़ पार्टी का सिर्फ महिमामंडन करे और उसकी खामियों पर पर्दा डाले।

पत्रकार रोहिणी सिंह ने पेट्रोल – डीजल के दामों की कवरेज को लेकर गोदी मीडिया को प्रकाशित किया है।

उन्होंने ट्वीट कर लिखा, “मुझे जब से याद है, अख़बारों में एक ख़बर फ़्रंट पेज पर हमेशा प्रमुखता से छपती थी, ‘पेट्रोल-डीजल’ की क़ीमतें बढ़ना-घटना एक अहम ख़बर होती थी।

आज पेट्रोल 90 और डीज़ल 80 के आस पास है। क्या चैनलों ने इस पर डिबेट की? अख़बारों में बड़ी बड़ी हेडलाइन लिखी गयी? बस यही गोदी मीडिया है”।